- देहरादून-हल्द्वानी में शार्क निगल जाएंगे यूकेडी को
- हिटो पहाड़ में क्या कुतगली लगती हैं यूकेडी के नेताओं को?
मौजूदा समय में विपक्ष को भाजपा के चाल, चरित्र और चेहरे को समझना होगा। भाजपा धर्म, छद्म राष्ट्रवाद और हिदुंत्व के सहारे सत्ता पर जम गयी है। भाजपा ने विगत 75 साल में वट वृक्ष की तरह अपनी जड़े मजबूत की हैं। संघ के अलावा सरस्वती शिशु मंदिर, एबीवीपी, बजरंग दल, हिन्दू वाहिनी आदि कई घटकों को जोड़ा है। मामला सीधे 80 बनाम 20 का है। जब सत्ता भाजपा के पास है तो धनबल, बाहुबल भी उसी के पास है।
ऐसे में विपक्ष के पास क्या है? वह बिखरा हुआ है। जहां भी मजबूत होता है तो भाजपा उसकी जड़ों में कुछ चांदी के सिक्के या कोई पद का पासा फेंक देती है। विपक्ष मजबूत नहीं हो रहा। जिस तरह से अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया, फूट डालो, शासन करो की नीति वही भाजपा भी अपना रही है। रही-सही कसर भाजपा की ट्रोल आर्मी कर देती है। हावर्ड और कैंब्रिज से पढ़े राहुल गांधी को पप्पू बना डाला। राहुल को समझ में आ गया और वह ठीक महात्मा गांधी की तर्ज पर भारत जोड़ो यात्रा पर निकल गये। भाजपा के पास अब इसका जवाब नहीं है तो ट्रोल आर्मी भी चुप्पी साध गयी है।
यूकेडी को अब तक समझ में नहीं आ रहा है। कभी दूरदर्शन में एक छोटी सी कहानी आती थी, टुन्नी मछलियों की। शार्क टुन्नी मछलियों को खा जाती थी। टुन्नी मछलियों ने विचार किया और सब एकजुट हो गयी। टुन्नी मछलियों ने बड़ा आकार लिया जो शार्क से भी बड़ा था। शार्क उसे देख डर कर भाग गयी। यूकेडी के ऐरी-भट्ट को पिछले 22 साल में यह बात समझ में ही नहीं आयी कि शहरों में तो भाजपा और कांग्रेस रूपी शार्क उन्हें हजम कर जाएंगे तो क्यों नहीं गांवों में प्रयास करते। लेकिन थके, बूढ़े और हारे कंधे न तो सिंहासन ही त्यागना चाहते हैं और न ही सड़क पर संघर्ष करना चाहते हैं। नवाब वाजिद अली की तर्ज पर चाहते हैं कि सेना शहर में घुसे तो तब देखेंगे।
हल्द्वानी में कार्यसमिति की बैठक यही बता रही है। अंकिता हत्याकांड मामले में यूकेडी के युवा नेताओं की भूमिका रही। मशाल जुलूस में खूब भीड़ उमड़ी। उसे देख लगा कि ऐरी-भट्ट के मन में लड्डू फूट गये होंगे। बकायदा कैबिनेट भी सोच ली होगी। लेकिन उत्तराखंड बंद के दिन सपने धड़ाम। यूकेडी के नेता समझते क्यों नहीं कि शहरी सीटों में तो वह कहीं नहीं ठहर सकते। गांवों में मजबूत किले बनाओ। गढ़ बनेगा, तभी जीत मिलेगी। वरना कार्यसमिति की बैठक करते रहो, जब कुछ करना ही नहीं है तो। एक बैठक का फैसला दूसरी बैठक में होगा। दूसरी बैठक का तीसरी में और बैठकों का अंतहीन सिलसिला जारी रहेगा।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]