दलों का चश्मा उतार कर नए नजरिये की जरूरत

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– प्रदेश को अच्छे लोगों की जरूरत, अपनों को स्पेस देना सीखें
– एक माह में दिख गई प्रदेश को लेकर कर्नल की विजनरी सोच

पूर्व कर्नल अजय कोठियाल ने आप ज्वाइन कर अच्छा किया या गलत, ये मैं नहीं कह सकता। मैं राजनीतिक विश्लेषक नहीं हूं। लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि कर्नल कोठियाल एक विजनरी नेता हैं। संवेदनशील हैं और उन्हें पहाड़ की समझ भी है। यही कारण है कि कोरोना काल में कर्नल ने अपने को प्रदेश के सब नेताओं से अलग साबित किया है। आपसे अनुरोध है कि किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले मेरा लेख पूरा पढ़ लें।

दिल्ली-एनसीआर से दून आने के बाद मैंने एक पत्रकार के तौर पर प्रदेश के कई सीएम का कार्यकाल देखा और विपक्ष की भूमिका भी समझने की कोशिश की। अधिकांश सरकारें और उनके नेता कमीशन कू मीट-भात खाने में चकाचक, लेकिन विजन जीरो। विकास योजनाओं का ज्ञान जीरो। पहाड़ के प्रति निष्ठा जीरो। अपनी माटी और थाती के प्रति समर्पण जीरो। सामाजिक दायित्व की भावना जीरो। गांव और ग्रामीण़ सरकारों की प्राथमिकताओं में है ही नहीं। यही कारण है कि जब कोरोना पहाड़ के गांवों में फैल रहा है तो हमारा गांव की देवी और कुलदेवता पर ही भरोसा है स्वास्थ्य व्यवस्था और सरकारों पर नहीं। सरकार फेल होती गईं और विपक्ष हाथ पर हाथ धरे बैठे रहा कि अगली बारी तो उसकी है। यानी भाजपा-कांग्रेस पिछले 20 साल से पांच-पांच साल का बारी-बारी का खेल खेल रहे हैं।

मौजूदा समय में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के पास 11 विधायक हैं। कोरोना से जंग में 11 विधायकों की भूमिका पर बहस हो तो ही पता चले कि माननीयों ने किया क्या? कांग्रेस की कमान पिछले चार साल से प्रीतम सिंह के पास है। कौन है ये प्रीतम सिंह? चकराता के अलावा 90 प्रतिशत प्रदेश की जनता जानती ही नहीं? यानी जिस पार्टी के अध्यक्ष को पहचान का संकट हो, उसके विपक्षी दल होने की भूमिका पर सवाल उठना लाजिमी है। आज जब कोरोना से प्रदेश में त्राहि माम-त्राहि माम हो रही है तो प्रीतम-हरदा और इंदिरा के बीच वर्चस्व का त्रिकोणीय संघर्ष चल रहा है, ताकि वो 2022 में अपनी पसंद के नेताओं को टिकट दिला सकें। जनता जाए भाड़ में। पिछले दो महीने में कांग्रेस की भूमिका के बारे में सोचो, और देखो। क्या किया सिवाए सरकार पर दोष देने या धरना देने के।

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विपक्ष के पास 11 विधायक तो हैं, लेकिन कोरोना से लड़ने की रणनीति नहीं। रणनीति कैसे बनाएंगे, जब विजन होगा तभी न। हरदा जमीन से उपजे तो प्रीतम को विरासत में पिता से सीट मिल गई। प्रदेश में राजनीति का अंधानुकरण है। प्रदेश साक्षर राज्यों में गिना जाता है लेकिन यहां के अधिकांश साक्षर दिमाग से नहीं दिल से सोचते हैं। उनकी निष्ठाएं दलों के प्रति बंटी हैं। ऐसे में उत्तराखंड की राजनीति में विजनरी और अच्छे लोगों के लिए जगह ही नहीं है। हमने इन 20 साल में अपने लोगों को स्पेस ही नहीं दिया। अच्छे लोग राजनीति में आए और हमने उन्हें हरवा दिया।

मेरा मानना है कि प्रदेश में कोरोना से जंग के मोर्चे पर तीरथ सरकार जितनी विफल साबित हुई, उतनी ही विफल और गैर-जिम्मेदार कांग्रेस भी रही। 11 विधायक होते हुए भी कांग्रेस ने जनता को सरकार और रामभरोसे छोड़ दिया। कांग्रेस चाहती तो 11 विधानसभाओं में 11 कोविड केयर सेंटर खोलती। 11 अस्पताल होते तो कोविड मरीजों को समय पर इलाज मिलता। यदि समय पर इलाज मिल जाता तो संभवत: प्रदेश में 6 हजार से अधिक मौतें नहीं होती। यानी जितनी फेल तीरथ सरकार रही, उतनी ही फेल विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी रही।

अब बात कर्नल कोठियाल की। फौज में कर्नल यानी कमांडिंग आफिसर। उसे पता होता है कि किसी भी खतरे से कैसे निपटना है। यही कारण है कि कोरोना महामारी को देख कर्नल ने थ्री फेज रणनीति तैयार की। संसाधनों का अभाव था, सरकारी अनुमति भी लेनी थी और टीम को भी मोटीवेट भी करना था। कर्नल ने तत्कालिक योजना तैयार की। सबसे पहले यूथ फांउडेशन की मदद से मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर और दवाएं उपलब्ध कराई। ऑक्सीमीटर दिए। सब कुछ युद्धस्तर पर। उनके सेनानायक कैप्टन तेजपाल सिंह नेगी को चिन्ता थी कि लोग ऑक्सीजन सिलेंडर ले तो रहे हैं, लेकिन लौटा नहीं रहे। इसके बावजूद कोशिशें जारी रही।

इसके बाद कर्नल की टीम ने फोन पर डाक्टर की सुविधा उपलब्ध कराई। ऑटो एम्बुलेंस की व्यवस्था की और फिर अत्याधुनिक सुविधाओं युक्त के 20 बेड का मिनी मिलिट्री कोविड अस्पताल बना दिया। उनका दावा है कि अन्य जिलों में भी इस तरह के कोविड अस्पताल तैयार किए जाएंगे। यूथ फाउंडेशन की 650 वालियंटर्स की टीम गांव-गांव जाकर लोगों को कोविड केयर जागरूकता और उनकी मदद कर रही है। वो सरकार पर तंज कसने की बजाए सरकार की मदद की अपील कर रहे हैं। यह है नयापन।

कर्नल ने कोरोना से लड़ने के लिए जो रणनीति बनाई है वह वाकई विजनरी है। हम पहाड़ों में 20 साल से डाक्टर नहीं चढ़ा पाए। यदि विजन और इच्छाशक्ति होती तो फौज के डाक्टरों की तर्ज पर पहाड़ में डाक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को रोटेशन के आधार पर भेजा जा सकता था। क्या पहाड़ों पर सेटेलाइट क्लीनिक और मोबाइल हॉस्पिटल नहीं चलाए जा सकते। जब सियाचिन में जवानों को डाक्टर उपलब्ध है, तो हमारे पहाड़ों में डाक्टर क्यों नहीं चढ़ सकते?

दरअसल, हमारे राज्य में तो नेताओं को विधायक निधि में भी कमीशन चाहिए। जब खून में भ्रष्टाचार मिला हो तो जनहित की बात और विजन कहां से आएगा? सोच तो कमीशनखोरी की ही रहेगी, इसलिए मेरा मानना है कि कर्नल कोठियाल कुछ अलग सोच के हैं, उन्हें आपदाओं और आतंकियों दोनों से लड़ने का खासा अनुभव है। एवरेस्ट चढ़ने का भी। तो क्या राजनीति की सीढ़ियां चढ़ना उनके लिए मुश्किल होगा। बस, मेरी अपील है कि हम इस कर्नल जैसे लोगों को महत्व देना सीख ले, राज्यहित में जरूर कुछ बदलाव होगा।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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