त्रिवेंद्र चचा की सरकार गई, डूब गयी बिल्लू की भांग

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  • बिलखेत में औद्योगिक भांग की खेती बंजर हुई
  • पांच साल में 1100 करोड़ के आईआईएएच के साथ हुआ था करार

अक्टूबर 2018 की बात है। पौड़ी के सतपुली के निकट स्थित बिलखेत में लगभग 800 नाली जमीन पर औद्योगिक भांग के पायलेट प्रोजेक्ट का दमदार आगाज हुआ। त्रिवेंद्र चचा की सरकार थी और उनके महान सलाहकारों ने उन्हें बताया कि औद्योगिक भांग से प्रदेश की तस्वीर और तकदीर बदल सकती है। आईआईएचए संस्था के साथ चचा ने 1100 करोड़ का अनुबंध कर लिया। संस्था को पहला लाइसेंस भी उत्तराखंड सरकार ने दिया। इसमें अगले पांच वर्ष में औद्योगिक भाग की खेती, भंडारण, परिवहन और प्रसंस्करण को लेकर बड़े-बड़े दावे किये गये थे।
औद्योगिक भांग उत्पादन का फैसला सही था या गलत? इस पर फिर चर्चा करूंगा लेकिन यह बताना चाहता हूं कि यह पायलेट प्रोजेक्ट कबाड़ में चला गया है। ग्रामीणों को सब्जबाग दिखाकर 700 नाली जमीन को 10 साल के लिए लीज पर लिया गया। ग्रामीणों को 300 रुपये नाली की दर से लीज का पैसा देना तय हुआ था लेकिन एक-दो बार देकर यह मामूली रकम भी नहीं दी जा रही है। ग्रामीणों को लालच दिया गया था कि उनको नौकरियों में प्राथमिकता मिलेगी, रोजगार सृजित होगा। किसानों को तीन गुणा मुनाफा होने का दावा किया गया था।
पायलेट प्रोजेक्ट के तहत बिलखेत में दो तीन बंदूकधारी भी तैनात किये गये। अब सब लापता हैं। ग्रामीणों को उल्लू बनाने वाला बिल्लू भी। कुल मिलाकर त्रिवेंद्र सरकार का एक और फैसला ब्रह्रमांड में विलीन हो गया है। हेम्प एसोसिएशन का भी पता नहीं है। बिलखेत के ग्रामीणों का कहना है कि सरकार उनकी जमीन वापस कर दें तो वह इस उपजाऊ भूमि को बंजर होने से बचा सकेंगे।
खैर, त्रिवेंद्र चचा को जन्मदिन की बधाई।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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