जूट के दस्ताने पहन खतरनाक बाक्सर को हराकर देश को दिलाया था पहला स्वर्ण

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  • अर्जुन अवार्डी पदम बहादुर मल्ल
  • कद्र करो सरकार, आपके पास हीरों की खान है, पहचान नहीं

1962 जकार्ता, एशियन गेम्स। 31 दिसम्बर, जूट के दस्ताने पहने पदम रिंग में उतरे तो उनके साथ जापान का सबसे खतरनाक बाक्सर कानामेरु था। प्रतियोगिता में अब तक उसने सभी विपक्षियों को नाकआउट किया था। पदम के पास न कोई कोच था, न अनुभवी बाक्सर। न ही यह पता था कि हुक कैसे लगता है। अपर कट या अन्य पैंतरे भी नहीं पता था। पता था कि तेजी से मुक्के चलाने हैं वन-टू। इतना अंदाजा लगा लिया था कि कानामेरू से दूरी बनाकर रखनी है। नजदीक नहीं जाना। बस, रिंग में मुक्कों की तेजी के साथ बचाव भी किया और देश के लिए बाक्सिंग में पहला गोल्ड मेडल 4-1 से जीत लिया। स्वर्ण जीत कर जब कोलकत्ता के दमदमा एयरपोर्ट पर पहुंचे तो एक भी प्रशंसक नहीं मिला।
1963 के जापान प्री-ओलंपिक में रजत पदक जीता। लेकिन ओलंपिक में इसलिए भाग नहीं ले सके कि बाक्सिंग एसोसिएशन के पास उनके अलावा किसी एक को भी जापान भेजने के लिए पैसे नहीं थे। आज यह बाक्सर भी उपेक्षित है। देहरादून में रह रहे इस बाक्सर ने देश के कई हीरो को तराशा है। मल्ल के जीवन की रोचक दास्तां हैं। वह उत्तरजन टुडे के मई अंक में।
82 वर्षीय अर्जुन अवार्डी बाक्सर पदम बहादुर मल्ल को उत्तरजन टुडे ग्रुप आगामी एक मई को सम्मानित करते हुए गर्व की अनुभूति कर रहा है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

 

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