तीन महीने में ही हांफने लगी तीरथ सरकार

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  • दायित्वधारियों का बोझ भाजपा उठाए, सरकार नहीं
  • 120 दायित्वधारियों में अधिकांश निकले निकम्मे, श्वेत पत्र जारी हो

तीरथ सरकार अब भाजपा के सीनियर कार्यकर्ताओं को खुश करने की कवायद में जुट गयी है। सही है, यदि उन्हें दायित्व या सम्मान नहीं दिया तो वो तीरथ या संगठन के लिए भला क्यों काम करेंगे? ऐसे समय में जब तीरथ सरकार के लिए कोरोना महामारी के साथ ही गैरसैंण, गाय, गंगा और गन्ना जैसे गंभीर विषय मुसीबत बने हुए हैं, तो उनके लिए विधायकी का चुनाव लड़ना भी एवरेस्ट चढ़ने जैसा काम है। ऐसे में उन्हे पार्टी संगठन के साथ की जरूरत है। यह तीरथ अच्छे से जानते हैं कि उत्तराखंड के भाजपा और कांग्रेसी नेता अपना स्वार्थ सिद्ध न होने पर पीठ पर छुरा भौंकते हैं। उधर, देवस्थानम बोर्ड भी सरकार के गले की फांस बना हुआ है। यदि तीर्थ पुरोहित नहीं माने तो गंगोत्री से चुनाव लड़ना तीरथ को भारी पड़ सकता है।
प्रदेश मुखिया की कमान संभालने के बाद अप्रैल माह में तीरथ रावत ने त्रिवेंद्र सरकार द्वारा मनोनीत लगभग 120 दायित्वधारियों की छुट्टी कर दी थी। तीरथ ने जनता की झूठी वाहवाही लूटने के लिए कई फैसले पलट दिये लेकिन चार कदम चलने में ही तीरथ सरकार की सांसें फूलने लगी हैं। देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार करने की बात की गयी थी लेकिन अब सरकार मुकर रही है। गैरसैंण कमिश्नरी को रद्द कर दिया गया लेकिन गैरसैंण राजधानी का मुद्दा यथावत है। देखते ही देखते तीरथ सरकार के तीन माह निकल गये और अगले तीन में तीरथ को चुनाव जीत कर विधायक बनना है। सो, महाशय जी को समझ में आ रहा है कि यदि संगठन को साथ लेकर नहीं चले तो आरएसएस ने कुर्सी तो दिला दी लेकिन चुनाव नहीं जिता सकेगी। सो, दायित्वधारियों की तैनाती कर टीम तीरथ चुनने की तैयारी है।

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तीरथ सरकार को चाहिए कि वो त्रिवेंद्र सरकार द्वारा मनोनीत 120 दायित्वधारियों के कार्यों पर श्वेत पत्र जारी करें ताकि जनता को पता लगे कि उनकी मेहनत की कमाई का इन दायित्वधारियों ने कितना सही उपयोग किया। विकास कार्य किये या कमीशनखोरी या ठेकेदारों के लिए दलाली। इनके गाड़ी-घोड़ों पर कुल कितना खर्च हुआ यह बात भी सार्वजनिक की जानी चाहिए। त्रिवेंद्र सरकार ही जब निकम्मी (हाईकमान की नजर में) निकली तो उनके द्वारा चयनित दायित्वधारी कैसे अच्छे निकलते? यानी वो भी निकम्मे। इसलिए हटा दिये गये।
सीएम साहब, हमें आपके दायित्वधारियों के मनोनयन पर कोई ऐतराज नहीं है लेकिन उनका खर्च सरकार की बजाए पार्टी संगठन उठाए। प्रदेश पर भारी भरकम कर्ज है। आशा, आंगनबाड़ी, संविदाकर्मी, स्वास्थ्यकर्मियों, रोडवेज कर्मियों समेत अनेकों विभागों को वेतन के लाले पड़े हैं। यदि आपको दायित्व बांटने हैं तो इनका बोझ जनता पर न लादा जाएं। ये सरकार के लिए नहीं, संगठन के लिए काम करते हैं। इसलिए इनका हर्जा-खर्चा भाजपा उठाएं। वैसे भी भाजपा ही देश में एकमात्र पार्टी है जो आज की तारीख में लाभ में चल रही है। चुनाव आयोग ने बताया है कि भाजपा को 785 करोड़ का चंदा मिला है जो कि कांग्रेस से पांच गुणा अधिक है। इसलिए मेरी राय है कि इस चंदे में से कुछ हिस्सा उत्तराखंड भाजपा मांग ले और दायित्वधारियों को दे दे।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

 

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