कहां हो महाराज? चले आओ, लौट आओ!

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कहां हो महाराज? आपके कुर्ते पर माइक लगा, डांट सुनने का इंतजार कर रहे हैं अफसर-कर्मचारी। आप होते तो ऐसा होता, आप होते तो वैसा होता। आप होते तो न जाने कैसे-कैसे होता। आप होते तो गौरीकुंड में प्रवचन देते। हजारों तीर्थयात्री वहीं रुक जाते तो केदारनाथ में मारा-मारी नहीं होती। आप ठंडी बयार हो, प्रकृति का चमत्कार हो। आप होते तो गंगोत्री-यमुनोत्री में एक भी तीर्थयात्री की मौत न होती। आपकी डांट में जादू हैं। आप जब कुर्ते के कालर पर माइक लगा कर अधिकारियों-कर्मचारियों को प्रायोजित रूप से डांटते हो, तो उसका गजब संदेश जाता है। सारे अधिकारी-कर्मचारी सीधे खड़े हो जाते हैं। आपके बिना यात्रा अधूरी है। छोटे सी दाणी कैसे करेगी तीर्थयात्रियों की रखवाली? आप कहां हो महाराज? पैरों की मसाज करवा रहे हो या कमर की। जहां भी हो, जिस हाल में भी हो, चले आओ। आपके बिना यात्रा अधूरी है महाराज? चले आओ।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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