एक शादी ऐसी भी

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  • पहाड़ की माटी और थाती से है जिनका गहरा और अटूट नाता
  • साधन संपन्न होने के बावजूद ग्रामीणों के साथ बांटी खुशी

8 जून, पौड़ी स्थित गांव चमाली। परम्परागत ढंग से बने एक मकान के प्रागंण में खूब चहल-पहल थी। पूरे गांव को भोज दिया जा रहा था। ढोल-दमाऊं के साथ दोपहर का यह भोज महावीर सिंह रावत और कलावती देवी की शादी की 50वीं सालगिरह पर दिया गया। शादी की 50वीं वर्षगांठ हिन्दू संस्कृति और रिश्तों की अगाढ़ परम्परा का द्योतक है। यह बताता है कि हमारे रिश्तों की मजूबती पाश्चात्य सभ्यता से कहीं अधिक मजबूत और बेजोड़ होती है। दूसरे मायने में यह भोज इसलिए भी महत्व रखता है कि आज जब पहाड़ खाली हो रहे हैं और नई पीढ़ी का अपनी माटी और थाती से नाता टूट रहा है तो वहीं महावीर रावत भाई के परिवार ने यह उत्सव मनाने के लिए गांव को चुना और पूरे गांव के साथ यह खुशी बांटी। गांव में सीमित संसाधनों के कारण इडियन नेवी से रिटायर उनके छोटे भाई धर्मवीर रावत को मैंने अपने बड़े भाई और भाभी के लिए फूल लेने के लिए गांव में दौड़ते देखा तो बेटा-बहू, बेटी और उसके पति को वैलून फुलाते और दूल्हा-दुल्हन के लिए स्टेज सजाते देखा। छोटी बहन ऊषा ने तो पूरे मकान की रंगाई-पुताई से लेकर कीर्तन सहित सभी व्यवस्थाएं संभाली।
उनके दोनों बेटे और बेटी शहरों में ही बसे हैं। इसके बावजूद सभी परिजन गांव पहुंचे। उत्साह के साथ इस सुनहरे अवसर के साक्षी बने। महावीर भाई का परिवार संपन्न है, दिल्ली में रहते हैं, चाहते तो वहीं सेलिब्रेट कर सकते थे, लेकिन उनका जो यह गांव से नाता है वह दिल को छू गया।
महावीर भाई प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया यानी पीटीआई में थे। पत्रकारिता के ककहरा की ललक उन्हें देखकर ही बनी, हालांकि मुझे कभी पीटीआई में काम करने का अवसर नहीं मिला। महावीर भाई ने बचपन से लेकर अब तक मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। जीवन में सुख-दुख की बदली आती-जाती है। सबसे महत्वपूर्ण है कि जीवन के हर मोड़ पर अपने साथ खड़े रहे। महावीर भाई का पूरा परिवार एकजुट है और उनके साथ खड़ा है। यह संदेश पूरे गांव और समाज को गया है। दंपत्ति को शादी की 50वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामना।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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