लुटेरी दुल्हन ले भागी जेवर-नकदी, शरण देने वाले की मौज

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  • दूल्हा अब सदमे में, क्या खाली हाथ लौटेगी बारात?
  • जोश में होश गंवाया, पुराने दूल्हे का अनुभव काम आया

परसों रात जहां शादी का मंडप सजा था, वहीं कल सुबह उजड़े मंडवे का भोर था। चहुं ओर उदासी थी। दूल्हा पक्ष उदास है क्योंकि दुल्हन लुटेरी निकली। विदाई से पहले ही दुल्हन दूल्हे के सारे जेवर, नकदी, बेनामी संपत्ति के दस्तावेज लेकर भाग गयी। दूल्हे की गलती, सुहागरात से पहले घूंघट उठाने को क्यों कहा? दुल्हन बुरा मान गयी। सुना है कि दुल्हन को पुराने घर में जगह मिलने की गारंटी है, जहां से वह पहले भागी थी। पुराने दूल्हे के सारे पुराने अरमान जग गये। सुंदरी अपना रूप लावण्य के साथ अथाह धन भी लाई है। अंधा क्या चाहे? दो आंखें। यानी मौज ही मौज। घूमेंगे, फिरेंगे, ऐश करेंगे और क्या?
पुराना दूल्हे के अरमान तो बहुत हैं लेकिन अब तक पाई-पाई को तरस रहा था। अब उसे लुटेरी दुल्हन के साथ ही अथाह दौलत भी मिल गयी है। यानी डबल मजा। मन में लड्डू फूट रहे थे, फिर भी ड्रामा किया कि घर वापसी तभी होगी जब परिजनों से बात कर लूं। भला फाके कर रहे परिजनों को जब 56 भोग की खुशबू आ रही हो तो वो क्यों कर लक्ष्मी ला रही दुल्हन को विरोध करेंगे। सौभाग्यवती, साक्षात लक्ष्मी को क्यों मना करें? उसने तय किया कि कुछ धन वह रखेगा, कुछ छोटे भाई को देगा क्योंकि वह विरोध कर सकता है और कुछ परिवार को देकर उनका मुंह बंद कर देगा। दुल्हन भी अपनी और धन भी।
उधर, नौटंकीबाज लुटेरी दुल्हन को पता था कि उसने पहले वाले दूल्हे के साथ क्या किया था, इसलिए आंखों से गंगा-जमुना बहा दी। धारी देवी की सौगंध ली और कहा कि बिना शर्त उसके साथ रहेगी। जबकि दिल में तो तय है कि बेटा, लूटूंगी तो तुझे भी। वक्त आने दो। उधर, पुराने दूल्हे के मन में बब्बल से लड्डू फूटे रहे हैं। उसे पता है कि उसके हाथ संजीवनी लग गयी है।
इधर, नया दूल्हा मन ही मन पछता रहा है, लेकिन बाहरी दिखावा कर रहा है कि सुंदर है तो क्या, इतना एटीट्यूड नहीं सहूंगा। सनी लियोनी समझती है अपने को। दूल्हे का मुकुट खतरे में है। उसे अब भय सता रहा है कि बरात बिना दुल्हन के लौटेगी। पड़ोसी और रिश्तेदार क्या कहेंगे? लोकलाज भी चीज होती है। लोकराज तो लोकलाज से ही चलता है। यही अंतर है नया दूल्हा जोश में होश खो बैठा और अनुभवी दूल्हा लूटेरी दुल्हन अपनाकर पुराना धन ब्याज समेत वापस पा जाएगा।
इधर, शादी में आए बराती ठगे से हैं। शगुन में उन्होंने गाढ़े पसीने की कमाई दी थी। सोचा था पार्टी खाएंगे, लेकिन फाके हाथ लगे और शगुन भी गया सो अलग। तरबूज चाकू पर गिरे या तरबूज पर चाकू, कटना तो तरबूज को ही है। लोकतंत्र है, जेब तो जनता की ही कटेगी, मौज नेता लेंगे।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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