- जनता की लड़ाई में आम आदमी का साथ जरूरी
- मुझे हौसला चाहिए और उत्तरजन टुडे को आपका सहयोग
मैं विगत 25 साल से विशुद्ध पत्रकारिता कर रहा हूं। मेरा कोई अन्य धंधा नहीं है। अपने इस ढाई दशक के करिएर में मैंने देश के तमाम बड़े मीडिया संस्थानों में काम किया है। इस दौरान मैंने कोशिश की है कि मैं अपने पेशे के प्रति पूरी तरह से ईमानदार रहूं। इस अवधि में मैं अधिकांश लड़ाई जीता हूं, कुछ में हार भी मिली है, तो कुछ में पीछे भी हटना पड़ा है। हारने या पीछे हटने का एक बड़ा कारण यह रहा है कि भ्रष्ट तंत्र बहुत मजबूत होता है। उससे टकराना आसान नहीं होता। मैं न तो आर्थिक तौर पर मजबूत हूं और न ही मेरे साथ वो लोग होते हैं जिनकी लड़ाई मैं लड़ता हूं। मैं जब भी कोर्ट-कचहरी या थानों के चक्कर काटता हूं, तो हमेशा खुद को अकेला पाता हूं। लीगल नोटिस तो अक्सर आते ही हैं। मुझे आपका साथ चाहिए।
2016 में सहारा की नौकरी के बाद ही तय कर लिया था कि अब मुख्यधारा की मीडिया में काम नहीं करना। मेरी किसी संपादक या ग्रुप एडिटर से बनती ही नहीं। भला अकडू, लड़ाकू और मुंहफट को कोई संपादक क्यों पसंद करेगा। देश के कई शहरों में तबादला दर तबादला और नौकरियां बदलने से ऊब गया था। ऐसे में 2016 में उत्तरजन टुडे मैगजीन की शुरुआत की। पत्रिका के संपादक पीसी थपलियाल और पूर्व आईएएस एसएस पांगती ने आरंभिक मदद की। देहरादून में नया था तो पहचान का संकट था, इसलिए डीडी न्यूज उत्तराखंड से कैजुअल सहायक समाचार संपादक के तौर पर जुड़ गया। इसमें भी पिछले साल साढ़े चार महीने निलंबित रहा, जो लड़ेगा, उसे कीमत तो चुकानी ही पड़ती है।
खैर, उत्तरजन टुडे पत्रिका की शुरुआत मेरी वर्षों की मेहनत की अग्निपरीक्षा थी कि क्या मैं इस पत्रिका को चला सकता हूं? चुनौती बड़ी थी और टके के तौर पर मैं टक-टका सा था। अपनी मेहनत पर भरोसा था, लेकिन डर था कि यदि फेल हो गया तो? लिहाजा तय किया कि मैगजीन के एडिटोरियल बोर्ड में मेरा नाम नहीं होगा। मेरा नाम आज भी नहीं है, लेकिन पहले दो साल मैंने मैगजीन में लिखे गये किसी भी लेख में अपना नाम नहीं दिया। पत्रिका पूरी तरह से रंगीन और ग्लोसी पेपर पर है। कंटेट पर फोकस किया। पत्रिका का ले-आउट जबरदस्त है। कट, कापी, पेस्ट जैसा कुछ नहीं रखा। यदि कहीं से कोई आर्टिकल लिया तो रिपोर्टर और उस संस्थान पूरा क्रेडिट देता हूं।
उत्तरजन टुडे मैगजीन को संचालित करते हुए छह साल पूरे हो चुके हैं। खबरों के लिए मैं गांव-गांव घूमता हूं। सीमांत गांवों से भी रिपोर्टिंग की है। खूब मेहनत की है। छह वर्षों की इस यात्रा में मुझे समाज और पहाड़ के लिए समर्पित कई प्रमुख लोगों का साथ और सहयोग मिला, जिनकी बदौलत यह पत्रिका चल रही है। मैं उन सभी का आभार व्यक्त करना चाहता हूं। मैं यह बता दूं कि पत्रिका को पिछले छह साल के दौरान आज तक चवन्नी का भी सरकारी विज्ञापन नहीं मिला। सब जानते हैं कि मिलेगा भी नहीं।
इसके बावजूद यह मेरे लिए गर्व की बात है कि कोरोना काल में जब सरकारी विज्ञापन हासिल करने वाली बड़ी-बड़ी पत्रिकाएं ध्वस्त हो गयीं तो उत्तजन टुडे लगातार प्रकाशित होती रही। यह पत्रिका बंटती नहीं, बिकती है, यानी बाजार में पत्रिका की मांग है। 500 प्रतियों से शुरू की गयी यह यात्रा अब औसतन 3000 प्रतियों तक पहुंच चुकी है, और अब इसे 5000 प्रतियों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
वन मैन आर्मी से शुरू की गयी उत्तरजन टुडे से अब सात लोगों को काम मिल रहा है। मेरा आप लोगों से अनुरोध है कि मुझे व्यवस्था से जंग लड़ने में मदद करें। उत्तरजन टुडे को सहयोग करें। यह पत्रिका पूरी तरह से उत्तराखंड के सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित है। इस मासिक पत्रिका की कीमत महज 30 रुपये है, वार्षिक 360 रुपये और आजीवन 5000 रुपये। मैगजीन की सदस्यता लेने से आपका यह छोटा-सा अंशदान मेरे हौसले को बढ़ाएगा और निष्पक्ष पत्रकारिता करने में मददगार साबित होगा।
उत्तरजन टुडे नेटवर्क
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[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]