पैंया की पुजाई में क्यों आता है बाज?

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  • क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है या दैवीय आधार?

एक पखवाड़े पहले पौड़ी के गांव सिरुंड में नरंकार भगवान की पूजा थी। पूजा के लिए पश्वा और ग्रामीण गांव से कुछ दूर स्थित पैंया के पेड़ के नीचे गये। वहां ढोल दमाऊ की थाप पर पश्वा नाचे। देर तक बाजे बजते रहे। पैंया पेड़ की पुजाई होती रही। मान्यता है कि पुजाई तभी सफल मानी जाती है जब पेड़ के ठीक ऊपर आसमान में गरुड़ या बाज दिखाई दे। लगभग आधे घंटे की पूजा के दौरान ही अचानक आसमान में बाज दिखाई दिया। वह बिल्कुल पैंया के पेड़ के ऊपर से गुजरा।
पता नहीं सच क्या है या इसका वैज्ञानिक आधार क्या है? लेकिन सच यही था कि उस इलाके में दूर तक बाज नहीं हैं। इसके बावजूद बाज वहां आया। बाज और गरुड़ पौड़ी के आसपास मौजूद हैं। क्या ध्वनि बाज को खींच लाई या कोई दैवीय शक्ति।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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