- जनवाणी से राजद्रोह तक विनोद का सफर
- दूरदर्शन पर भी मंत्रियों से पूछते थे ऐसे सवाल कि जवाब देने वालों की घिग्गी बंध जाए
लगभग छह महीने पहले पत्रकार और एंकर विनोद दुआ पर हिमाचल में राजद्रोह का मामला दर्ज हुआ था। आरोप था कि उन्होंने अपने यू-टयूब चैनल में पीएम मोदी पर टिप्पणी की। विनोद दुआ इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक लड़े और यह प्राथमिकी खारिज कर दी गयी। यह तो महज टिप्पणी थी जो आज की पत्रकारिता में एक बड़ा हिम्मत का काम है। वरना पत्रकार एंकर तो चाटुकारिता करते अधिक नजर आते हैं। पदमश्री विनोद दुआ का जाना आज इसलिए खल रहा है कि उन्होंने जो पत्रकारिता और एंकरिंग के आयाम स्थापित किये थे वो आज मटियामेट हो रहे हैं। न्यूज चैनलों के अधिकांश एंकर चूहे जैसा दिल लिए हैं और चाटुकारिता की चासनी में डूबे हुए।
नौजवानी के दौर से ही विनोद दुआ और प्रणय राय की जोड़ी को चुनावी विश्लेषण करते देखते। दूरदर्शन के जनवाणी में वो जब मंत्रियों से करारे सवाल पूछते तो मंत्री बिदक जाते या बोल नहीं फूटते थे। यह विनोद दुआ की हिम्मत है कि वह सरकारी दूरदर्शन में भी मंत्रियों को दस में से तीन या दो नंबर देते थे। अब कोई ऐसी हिम्मत करके दिखाए।
वो बिना टेलीपाम्पटर के ही एंकरिंग करते थे, आज एंकरिंग और पत्रकारिता ऐसी हो गयी है कि पीएम, सीएम और मंत्रियों के पीआर पहले एंकर को सवाल दे देते हैं कि यही सवाल पूछने हैं। मसलन आम काट कर या चूस कर खाते हैं? आप इतनी मेहनत करते हैं तो सोते कब हैं?
यह दौर पत्रकारिता के पतन का है। हम पत्रकार धीरे-धीरे समाज में अपनी प्रतिष्ठा खो रहे हैं और विश्वास भी। ऐसे समय में विनोद दुआ का यूं चले जाना निष्पक्ष और निडर पत्रकारिता के एक युग का अंत ही कहा जाएगा। अलविदा विनोद जी। भावपूर्ण विनम्र श्रद्धांजिल।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]