साहित्य ही दर्शाता है नारी स्थिति में बदलाव

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नई दिल्ली, 8 मार्च। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को उत्थान फ़ाउंडेशन द्वारका ने ‘हिन्दी प्रवासी साहित्य में नारी’ विषय पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया। इसमें भिन्न-भिन्न देशों से जुड़े अतिथियों ने महिलाओं की विभिन्न क्षेत्रों व साहित्य में प्रगति को लेकर अपने विचार प्रकट किए। सभी प्रतिभागियों ने माना कि अब नारी के प्रति समाज के दृष्टिकोन में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है, यह बदलाव सकारात्मक रहे। इस बारे में जागरूकता फैलाने और लोगों को सकारात्मक दिशा में प्रेरित करने की भी आवश्यकता बल दिया और स्पष्ट किया कि तभी इन बातों की सार्थकता है। अतिथियों ने काव्य पाठ भी किया। सह आयोजक तरूण घवाना ने बताया कि भारत के इतर बारह देशों के वक्ताओं को सुनना एक अनूठा अनुभव था।
वेबिनार की शुरुआत करते हुए उत्थान फ़ाउंडेशन की संचालिका अरूणा घवाना ने आज की चर्चा के विषय को सबके सामने प्रस्तुत किया।


तीन घंटे तक चले ऑनलाइन विचार-विमर्श में कई महत्वपूर्ण बातें सामने आई। अतिथि वक्ताओं ने जो बातें कहीं उनमें से प्रमुख बिंदुओं को यहां प्रकाशित किया जा रहा है।
वेबिनार में भाषाविद और साहित्यकार डॉ विमलेशकांति वर्मा ने भाषा विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट किया कि नारीवाद को समझने की आवश्यकता है।
यूके से लेखनी संपादक शैल अग्रवाल ने कहा कि नारी खुद सशक्त है। वह कभी हारती नहीं है।
कनाडावासी स्नेह ठाकुर ने कविताओं के माध्यम से नारी के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन किया।
स्वीडन से इंडो-स्कैंडिक संस्थान के उपाध्यक्ष सुरेश पांडे ने मीरा को नारी शक्ति का रूप बताते हुए रोचक काव्य प्रस्तुति की।

यूएसए से विश्वविद्यालय ऑफ़ फ़ीजी की प्राध्यापिका रहीं मनीषा रामरक्खा ने वेबिनार में भाग लिया।
चीन के क्वान्ग्तोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर (हिंदी) के पद पर कार्यरत डॉ विवेक मणि त्रिपाठी ने वक्तव्य में कहा कि किसी भी देश के समाज को समझने के लिए उस देश की नारी स्थिति से अंदाजा लगाया जा सकता है।
न्यूज़ीलैंड से मैसी विश्वविद्यालय की निदेशक डॉ पुष्पा वुड ने नारीवाद के दो स्वरूपों को समझने पर ज़ोर दिया।
आस्ट्रेलिया से श्रद्धा दास ने फ़ीजी में महिला हिन्दी रचनाकारों की बात की।
फ़ीजी से विश्वविद्यालय फ़ीजी में अध्ययनरत भारती देवी ने अपने विचार व्यक्त किए।
मॉरीशस से हिन्दी शिक्षक शंभू धनराज ने कहा कि शिक्षा ही नारी को आगे बढ़ाती है।
सूरीनाम से हिन्दी अध्यापिका लैला लालाराम व श्रीलंका से डॉ अनुषा ने सीता पर अपना वक्तव्य रखा। साथ ही व्यवसायिकता के दौर में महिलाओं के प्रति बदलते नज़रिए को प्रस्तुत किया।

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