बांग्लादेश की मुक्ति के लिए हमने कम कुर्बानियां नहीं दी!

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– युद्ध की विभीषिका: दो मिनट पहले हंसते-मुस्कराते साथियों को गोलियों से छलनी देखना दुखदायी है!
– लेखिका इरा कुकरेती की जल्द प्रकाशित होने वाली पुस्तक ‘कहानी 1971 के युद्ध की धर्मनगर से सिलहट‘ के गाजीपुर हमला-कहर की रात से ली गई पंक्तियां!

पोस्ट में ये जो फोटो है। ये डिस्क है। इसे युद्ध में भाग लेने से पहले हर सैनिक की कलाई और गले में बांधा जाता है। जिसमें उसका बैच नंबर, रैंक और नाम होता है, ताकि यदि वह शहीद हो गया तो उसकी पहचान हो सके।
गाजीपुर। मेजर जेटली एवं मेजर पंवार के नेतृत्व में कैप्टेन चौहान व लेफ्टीनेन्ट भट्टाचारजी अपनी-अपनी सैनिक टुकड़ियों के साथ दुश्मन पर हमला करने के लिए आगे बढ़ रहे थे।
फायरिंग की आवाज व गिरते हुये तोप के गोले रात के सन्नाटे में गूंज रहे थे, फायरिंग व गोलों की परवाह किये बगैर कैप्टेन चौहान सीधे दुश्मन के बंकरों तक पहुंच गये, उन्होंने बंकरों पर ग्रेनेड से हमला किया लेकिन रात के अंधेरे में यह देखकर हैरान हुये कि ग्रेनेड किसी चीज से टकराकर वापस आ रहे थे। तब उन्हें एहसास हुआ कि दुश्मन ने बंकरों पर लोहे की जाली लगा कर दोहरी सुरक्षा का इन्तजाम किया हुआ था। रात में दोनों ओर से भयंकर गोलाबारी हो रही थी। कैप्टन चौहान को गोलियां लग गयी वे घायल होकर कराह रहे थे। अंधेरे में यह महसूस हो रहा था कि कई और जवान जो आस-पास झाड़ियों की ओर से दुश्मन पर फायरिंग कर रहे थे, घायल हो चुके थे एक-दूसरे की कराहट का एहसास होने पर, हाथ से छूने की कोशिश में हाथ पर गर्म खून लगते ही पता चल जाता था कि दूसरा भी बुरी तरह से घायल है।
कैप्टन चौहान अपने घाव की परवाह न करते हुये अपने सभी जवानों को फुसफुसा कर हौसला बढ़ा रहे थे, उन्होंने अपने को घसीट कर ढलान में पोजीशन ले ली थी। मेजर जेटली को पेट में भी गोलियां लग चुकी थी। वे घायल होकर झाड़ियों की ओट में लेटे हुये थे, उन्होंने सी.ओ. साहब को वायरलेस से सूचना दी कि वह, कैप्टन चौहान और कई सैनिक घायल हो चुके है। मेजर पंवार दुश्मन पर आक्रमण करने के लिये आगे बढ़े। भारी गोलाबारी हो रही थी, दुश्मन की स्थिति वहां पर काफी मजबूत थी। बंकर के चारों ओर लोहे की मजबूत जाली थी, और वे कुछ ऊँचाई पर थे उनकी मशीनगन चारों तरफ आग उगल रही थी।
इसी समय ब्रेवो कम्पनी के ले. भट्टाचारजी दुश्मन के बंकर के पास पहुंच चुके थे उन पर बंकर से लगातार गोलियों की बौछार हो रही थी तभी दुश्मन के गोले से उनकी एक बांह उड़ गयी पर फिर भी इस बहादुर नौजवान ने, जिस बंकर से गोलियां आ रही थी उसे नष्ट कर दिया लेकिन अब तक उनका शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था, वे घायल होकर जमीन पर गिर पड़े फिर किसी तरह सी.ओ. साहब को वायरलेस से संदेश दिया, “सर मैं घायल हो चुका हूँ” कर्नल हरदेव के लिये यह उनका आखिरी संदेश था।
नोट: लेखिका इरा कुकरेती की यह पुस्तक 1971 के युद्ध की वास्तविक कहानी पर आधारित है। इरा कुकरेती के पति कर्नल राकेश कुकरेती ने इस युद्ध में भाग लिया था। तब वो लेफ्टिनेंट थे। पुस्तक का लोकार्पण जल्द होगा।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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