अंबानी टॉप-10 रईसों की लिस्ट से बाहर, राष्ट्रीय शोक दिवस घोषित हो यह दिन

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  • बधाई हो देशवासियो, पेट्रोल के शतक के बाद भुखमरी का शतक
  • ग्लोबल हंगर इंडेक्स में नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान, म्यांमार से भी नीचे हैं हम

आज सुबह बड़ा झटका लगा। बेचारे मुकेश अंबानी विश्व के टाप 10 रईसों की सूची से बाहर हो गये। 11वें स्थान पर जा पहुंचे। पूरा देश दुखी है। नेताओं को चिन्ता सता रही है कि पांच राज्यों में चुनाव होने हैं और बेचारे अंबानी की संपत्ति कम हो गयी। हाय, हाय छाती पीटो, नाशपीटो। 78 अरब डालर (पता नहीं कितने रुपये होते हैं) बतायी जा रही है अंबानी की संपत्ति।
निश्चित तौर पर अंबानी की इस गिरावट को राष्ट्रीय शोक दिवस मनाना चाहिए। इधर, सरकार गरीबों को पांच किलो राशन बांट रही है। हमरू उत्तराखंड म भी 14 लाख राशन किट बटैणि छिं बल। फिर पता नहीं, इन नोबल प्राइज वालों को भारतीय नजर क्यों नहीं आते? यहां की सरकार जबरदस्त काम कर रही है। इसके बावजूद यहां के किसी भी नेता को नोबल पुरस्कार क्यों नहीं मिलता?
जरूर ग्लोबल हंगर इंडेक्स तक पाकिस्तान की पहुंच है। साजिश के तहत भारत को 116 देशों के भुखमरी इंडेक्स में 101वां स्थान दिया है। वैसे, बधाई तो बनती है कि अच्छे दिन आ गये। पेट्रोल 100 रुपये पार कर गया और भुखमरी भी। जरूर यह इंडेक्स झूठा होगा। नेपाल 76वें, बंगलादेश भी 76वें और पाकिस्तान 92वें स्थान पर है। ऐसा कैसे हो सकता है? भला उसकी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे? हो नहीं सकता। सरकार हर महीने राशन बांट रही है। रसोई गैस सिलेंडर यदि 1000 तक पहुंच गया तो क्या? उत्तराखंड में तो कुपोषित बच्चों को मंत्री और अफसरों ने भी गोद लिया है। आज तक बच्चे दिखाए नहीं कि कहां और किस हाल में हैं? यदि दिखाएंगे तो उन बच्चों पर बुरी नजर लग सकती है, इसलिए नहीं दिखाए।
भारत में लोकतंत्र है। किसान के 10 हजार के कर्ज पर बैंक उसके घर कुर्की कर देता है लेकिन अंबानी जैसों का करोड़ों का एनपीए माफ हो जाता है। पेट कैसे भरेगा? हिंदू खतरे में है। डेमोग्राफिक चेंज हो रहा है। कैसे राष्ट्रवादी हो कि रोटी मांगते हो, रोजगार मांगते हो? देखते नहीं, मोदी जी कितनी मेहनत कर रहे हैं, हजारों हजार करोड़ के विमान में भी काम कर रहे हैं। देश आगे बढ़ रहा है। शोक व्यक्त करो कि अंबानी की रैंकिंग एक कम हो गयी। बाकी भुखमरी इंडेक्स का क्या, 20 करोड़ लोग तो नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह के राज में भी भूखे सोते थे। इसमें नया क्या है?
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

तो क्या इतिहास बदलने की हो गयी शुरुआत?

 

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