- आप को पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा पड़ी भारी
- सुविधाभोगी नहीं पहाड़ के मुद्दों को लेकर बनाए पैठ
आम आदमी पार्टी में नए लोग आए और चलते बने। पुराने ठगे रह गए। उनको किसी ने पूछा नहीं। पिछले सात-आठ साल से प्रदेश में पार्टी के लिए जमीन तैयार कर रहे नेताओं को दिल्ली दरबार ने साइड लाइन कर दिया। नया नौ दिन, पुराना सौ दिन की कहावत चरितार्थ हुई और भाई लोग विधानसभा चुनाव में हार के बाद निकल लिए। बचे वही पुराने कार्यकर्ता। मरता क्या न करता की तर्ज पर पार्टी को होश आया और अब पुराने वफादार लोगों को सम्मान मिलने लगा।
पार्टी प्रवक्ता उमा सिसोदिया विधानसभा चुनाव से पहले हाशिए में थी। चुनाव के बाद भी जब संगठन बना तो उनकी उपेक्षा हुई और फिर जब कर्नल अजय कोठियाल और उनकी टीम ने आप को धत्ता बता दिया तो पार्टी को अपनी भूल का एहसास हुआ। प्रदेश में अब कौन आप का नामलेवा बचा था? दीपक बाली को कमान दी लेकिन प्रभारी दिनेश मोहनिया किसी काम के साबित नहीं हुए। आप को प्रदेश प्रभारी को भी बदलना चाहिए।
इस बीच नई सूची आई और उमा सिसोदिया को युवा और सोशल मीडिया की जिम्मेदारी दी गयी। उमा पहले दिन से ही आप में है और उन्होंने कुमाऊं और गढ़वाल में यात्रा कर पार्टी को पहचान दिलाने की पहल की थी। लेकिन बदलते वक्त के साथ उनको भुला दिया गया। अब आप को प्रदेश में जिंदा रखने की जिम्मेदारी उमा जैसे पुराने कार्यकर्ताओं पर है।
सबसे बड़ी बात यह है कि भाजपा ने बड़ी चालकी के साथ पहाड़ियों को सुविधाभोगी बना दिया। किसानों को दो हजार, आम जनता को पांच किलो राशन दिया और जनता को डरा दिया कि आप आएगी तो मुस्लिमों को बढ़ावा मिलेगा। जबकि हकीकत यह है कि मुस्लिमों के बिना आजकल चारधाम यात्रा भी संभव नहीं है। आप का सोशल विंग काउंटर नहीं कर सका। प्रभारी का कोई विजन नहीं था तो चालों को समझ नहीं सका। कर्नल कोठियाल राजनीतिक व्यक्ति नहीं थे, लिहाजा दुष्प्रचार को काउंटर नहीं कर सके। नतीजा सिफर रहा। खैर, अब आप को पूरी रणनीति बनानी होगी।
सुविधाभोगी से कहीं अधिक पहाड़ के मुद्दों को उठाना होगा। वरना, आप को जमने में जमाने लगेंगे।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]