शादीस्थान (Shaadisthan) : कम बजट, छोटी फिल्म, रोचक कहानी; ओटीटी का सार्थक मनोरंजन

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फिल्म-शादीस्थान (Shaadisthan)
निर्देशक-राज सिंह चौधरी
कलाकार-कीर्ति कुल्हरी, राजन मोदी, निवेदिता भट्टाचार्य, मेधा शंकर व केके मेनन आदि।

सोशल मीडिया पर इस फिल्म की बड़ी चर्चा है। काफी लोगों को पसंद आ रही है लेकिन जब मैं शादीस्थान (Shaadisthan) फिल्म देखने बैठा तो मुझे आशा और निराशा दोनों ही हाथ लगी। सबसे पहले आशावादी बातें कर लेते हैं। फिल्म में यह देखकर अच्छा लगा कि फिल्म की कहानी चलती फिरती लगती है। वह एक लोकेशन पर अटक नहीं जाती। टैक्सी की स्पीड जैसी ना सही, कम से कम धीमी गति के समाचार की तरह बैकड्रॉप बदलती तो रहती है। फिल्म से यह आशा भी बंधती है कि सामान्य बजट में भी संवेदनशील फिल्में बनाई जा सकती हैं और अगर कलाकार प्रभावी अभिनय कर दें तो सोने पे सुहागा। यह पॉजिटिव प्वाइंट शादीस्थान (Shaadisthan) के लिए जुड़ते हैं। क्योंकि एक टैक्सी के भीतर बैठे कुछ किरदारों के जरिये कहानी में दो परिवेश की सोच दिखाई गई और इसके लिए फास्ट म्यूजिक की तरह उछलकूद की शैली को नहीं अपनाया गया है। डायरेक्टर राज सिंह चौधरी ने बड़े ही धैर्य के साथ काम लिया है। उन्होंने कहानी कहने की एक रोचक शैली अपनाई है। जिसे शहरी दर्शक वर्ग काफी पसंद भी कर रहे हैं।

डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज इस फिल्म का सबसे खूबसूरत पक्ष यह है कि इसमें कई प्रकार की गलतफहमियां दूर करने की कोशिश की गई है। मसलन जो संस्कारी लिबास में है वहां पिछड़ी हुई मानसिकता की जैसी घुटन देखने को मिलती है जबकि जो म्यूजिक बैंड के आर्टिस्ट के मॉडर्न लिबास में है वहां केवल आजादख्याली नहीं है बल्कि संवेदनशीलता भी बची हुई है।

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इसके बावजूद शादीस्थान (Shaadisthan) की कहानी के कुछ पक्ष को देखकर मुझे निराशा भी होती है। एक तो फिल्म में शहरी दर्शक वर्ग को ध्यान में रखकर संवादों में गालियां डाली गई हैं। यह ओटीटी का भाषाई फैशन हो सकता है लेकिन इसकी अनिवार्यता नहीं है। दूसरी बात कि कहानी में जो शर्मा परिवार मुंबई से राजस्थान एक शादी समारोह में शामिल होने जा रहा है-वह इतना परंपरावादी है कि चाय नहीं पीना चाहता, पत्नी बार-बार घूंघट सर पर डालती रहती है और पिता नाबालिग बेटी की शादी तय कर देता है। कहानी में रखे गये ये प्रसंग गले से नहीं उतरते। बड़े असहज लगते हैं। आज देश के छोटे-से-छेटे शहरों में भी जीवन शैली बदल चुकी है लेकिन जो मध्यवर्गीय परिवार मुंबई से राजस्थान जा रहा है वह कुछ इस सोच का है-यह जानकर अचरज होता है। हालांकि कहानी में एक जगह यह जाहिर होता है कि शर्मा परिवार भी राजस्थान के अजमेर का रहने वाला है। ऐसे में हो सकता है वह भले ही मुंबई में अब रह रहा हो लेकिन उसके जहन से बाल विवाह जैसी सोच अब भी नहीं निकल सकी। डायरेक्टर-राइटर शायद यह कहना चाहते हों।
वैसे शादीस्थान (Shaadisthan) एक मनोरंजक फिल्म है, इसको देखा जाना चाहिये। यह फिल्म दो पीढ़ी ही नहीं बल्कि दो परिवेश के टकराव और अंतरद्वंद्व की कहानी समझाती है। फिल्म में साशा के किरदार में कीर्ति कुल्हरी ने प्रभावशाली अभिनय किया है। वहीं आर्शी के किरदार में मेधा शंकर ने भी काफी प्रभावित किया है। राजन और निवेदिता भी संस्कारी लगे हैं। कुल मिलाकर फिल्म कहीं-कहीं अतार्किक-सी लगने के बावजूद ओटीटी के दर्शकों को एंटरटेन कर पाने में कामयाब है।

-संजीव श्रीवास्तव

रेटिंग – 2.5 स्टार।

[साभार: www.epictureplus.com]

 

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