’हम न हारे थे न हारे हैं ना हारेंगे कभी’….

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भारत आज असामयिक, आकस्मिक, असहनीय, अविस्मरणीय आपदा से जूझ रहा है। इससे पूर्व भी हमारे देश ने न जाने कितनी बार विषम परिस्थितियों में संघर्ष करके संयम, समर्पण, सेवा, सहयोग से इस तरह की आपदाओं में सफलता प्राप्त की है। इस कोरोना महामारी से भी हम जीतेंगे फिर उठ खड़े होंगे और विश्व में सिरमौर बनेंगे। आवश्यकता है एकमात्र दृढ़ संकल्प शक्ति की। मनोविज्ञान की दृष्टि से चेतना पत्थर में सोती है, वनस्पति में जगती है, पशु में चलती है और मनुष्य में चिंतन करती है। इस चिंतन का संबंध मनन से है जो मन की शक्ति के रूप में निहित होता है। मन के जुड़ने से असंभव से लगने वाले कार्य भी सरलता से संपन्न हो जाते हैं और मन के टूटने से बड़े-बड़े संकल्प भी धराशायी हो जाते हैं। मन की इसी आंतरिक शक्ति के दम पर मानव ने इस विविधतापूर्ण एवं शक्तिशाली प्रकृति को भी अपने नियंत्रण में किया है।

जीवन चलने का नाम। चलते रहो सुबह-ओ-शाम कि बादल छट जाएगा मितवा।। जीवन में यदि संघर्ष है तो उस संघर्ष की प्रक्रिया के क्रम में अनेक अवसर ऐसे भी आते हैं जब परिणाम हमारी आशानुकूल नहीं मिलते। कई बार हमें विफलताएं भी मिलती हैं। हमें उन विफलताओं से घबराकर निराश नहीं होना चाहिए। हमें अपने मन को भी छोटा नहीं करना चाहिए। मन से यदि हम स्वयं को पराजित मान लेते हैं तो फिर कहानी यहीं पर समाप्त हो जाती है। जीवन उत्साहहीन एवं बोझिल बन जाता है। ’मन का हारना ही वास्तविक हार है’। उसके बाद सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक ऊर्जा, उत्साह, उमंग एवं दृढ़ इच्छाशक्ति जैसी शक्तियों का स्वयमेव अभाव हो जाता है।

’कोरोनाः भारत की बदनामी?’

’मानव मन अनंत शक्ति का स्रोत है’। उसे हीन भावना से बचाए रखना आवश्यक है। मन की आत्मिक शक्ति की अपरिमित क्षमता को विस्मृत किए बिना ’अपनी इच्छा शक्ति में अगाध विश्वास ही सफलता की मूल कुंजी है’। अपनी क्षमताओं में विश्वास का अभाव व्यक्ति को मानसिक रूप से अशक्त बना देता है। मानसिक दुर्बलता सर्व शक्ति संपन्नता के बावजूद व्यक्ति को विफलता की राह पर धकेल देती है। अपने मन को सुदृढ़ बनाना उसे सफलता प्राप्ति के प्रति आश्वस्त बनाए रखना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अपरिहार्य है।

आज वैश्विक महामारी के इस दौर में एक बात पूर्णतः सिद्ध हुई है कि जिस व्यक्ति ने मानसिक रूप से अपने को सुदृढ़ बनाए रखा वह इस महामारी पर विजय पाकर दुःखद दौर से बाहर निकल आया है। आज ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां व्यक्ति की मानसिक परिपक्वता उसे लक्ष्य तक पहुंचाने में पूर्णतः सफल हुई है। भारत का संघर्षों से बहुत गहरा नाता सदैव से रहा है। हर संघर्ष चाहे वह आपदा का हो, आतंकवाद का हो, युद्ध का हो, अकाल, बाढ़, भुखमरी हो या महामारी का हो सभी में ’भारतीयों ने अपनी प्रबल इच्छा शक्ति और सबल आत्मविश्वास से सफलता पाई है’। आज से तकरीबन साढ़े 500 वर्ष पूर्व क्रांतिकारी भविष्य द्रष्टा, सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात करने वाले कवि कबीर ने भी कहा था ’मन के हारे हार है मन के जीते जीत’।

भारत की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार, सामाजिक ताना-बाना और हमारे पूर्वजों ने सदैव मन की स्थिति को शक्तिशाली रूप में स्थापित किया है। आज भारत समग्र दृष्टि से श्रेष्ठता के शिखर की ओर अग्रसर है। यद्यपि वर्तमान परिस्थिति हमारे लिए कठिन साध्य है परंतु हम सभी अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से इस झंझावात पर भी काबू कर लेंगे। मन में दृढ़ संकल्प एवं उत्साह रखने वाले व्यक्तियों ने दुनिया में असंभव कार्यों को भी संभव कर दिखाया है जो कल्पना से भी परे हैं। उदाहरण स्वरुप सावित्री द्वारा सत्यवान का जीवन यमराज से लौटाना हो या फिर नचिकेता द्वारा मृत्यु को पराजित कर इच्छानुसार वरदान प्राप्त करना हो। महाराणा प्रताप द्वारा मुगल शासक अकबर से टक्कर लेना हो या शिवाजी द्वारा औरंगजेब के दांत खट्टे करना हो।

दृढ़ इच्छा शक्ति प्रबल आत्मविश्वास के बल पर ही शारीरिक रूप से अत्यधिक कमजोर गांधी जी ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी थी। परमाणु बम से तबाह हुए जापान ने पुनः विश्व के अग्रणी शक्ति संपन्न देशों में अपना स्थान अदम्य उत्साह, धैर्य और मानसिक परिपक्वता के बल पर ही बनाया है। आज भारत किसी भी क्षेत्र में विश्व के अग्रणी देशों से कहीं कमतर नहीं है। वैश्विक आपदा ने सभी देशों को झकझोर कर रख दिया है। सभी अपने-अपने साधन, परिस्थिति, प्रयासों से इससे निजात भी पा रहे हैं। हमने हमारे राष्ट्र ने अनेक बार अत्यंत विषम परिस्थितियों में भी कभी विफलता को मन से स्वीकार नहीं किया और निरंतर लक्ष्य प्राप्ति के प्रयास में लगे रहकर अंततोगत्वा उस पर विजय ही पाई है। भारत ने झंझाबातों से जूझकर सफलता को अपने दामन में संजोकर सदैव ही कहा है ’हम न हारे थे ना हारे हैं ना हारेंगे कभी’
’सफलता को अपने कदमों में लाकर ही रहेंगे’।

जीवन एक अनवरत संघर्ष का नाम है। समय के साथ-साथ आगे बढ़ते रहने की प्रबल मानवीय लालसा ही जीवन है। जीवन की निर्बाध गति के मार्ग में समस्या रूपी अनेक अवरोध भी उत्पन्न होते हैं। जो जीवन रूपी मार्ग को और सुदृढ़ बनाते हैं और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमें प्रेरित भी करते हैं। ’जीवन कर्म का पथ है’। लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु लंबी कठोर साधना की आवश्यकता होती है। ऐसे में मानव मन कई बार परिस्थितियों के सामने खुद को मजबूर सा पाता है। वह टूटने बिखरने लगता है। समस्याओं से टकराकर इतना थक जाता है कि कई बार निराशा की अंधकारमय गहरी खाई में खोने का भय पैदा हो जाता है। जीवन में व्याप्त संघर्ष से कोई भी व्यक्ति बच नहीं सकता। ’जीवन में संघर्ष अपरिहार्य है’। इस संघर्ष का सामना सिर्फ और सिर्फ दृढ़ संकल्प के माध्यम से ही किया जा सकता है। सफल होने के लिए आपको अपने अंदर के अदम्य उत्साह, भरपूर ताजगी, क्षमताओं का शत-प्रतिशत उपयोग पूर्ण आत्मविश्वास के साथ करना होगा।

प्रत्येक सामाजिक प्राणी ने चींटी और मकड़ी वाली कहानी अवश्य सुनी होगी जो दीवार पर बार-बार चढ़ती और गिर जाती थी लेकिन उसने हार स्वीकार नहीं की। निरंतर अथक प्रयास के परिणाम स्वरुप वह अपनी मंजिल पाने में सफल भी हुई। एक छोटी सी कहानी हमें यह प्रेरणा देती है कि जीवन में कभी भी मन को कमजोर मत होने दीजिए। ’हमारा मन हमारा आत्मबल अनंत, अदम्य शक्ति का अक्षय स्रोत है’। यह शक्ति अत्यंत व्यापक है इसकी संभावना को पहचानिए। यही इच्छा शक्ति हमारे कार्य को सफलता एवं विफलता में परिवर्तित कर सकती है। हमें जीवन के इस आपदग्रस्त समय में संघर्ष करते हुए सफलता के संकल्प को पूर्ण करना होगा। हम सभी को अपना ध्येय वाक्य बनाना होगा……

’जो होता है होने दो, यह पौरुषहीन कथन है’
’जो हम चाहेंगे होगा, इन शब्दों में जीवन है’
पुनश्च शुभमस्तु।

’अजय तिवारी’
प्रवक्ता, वरिष्ठ शिक्षाविद्
सामयिक लेखक, विचारक
प्रसिद्ध लोकोपकारक
राज्य शिक्षक सम्मान प्राप्त

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