ड्रग-नशे पर हम क्यों चुप रह जाते हैं?

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file photo source: social media
  • युवा पीढ़ी को नशा कर रहा खोखला, बढ़ रहा मौत का आंकड़ा
  • बड़े घर से लेकर छोटे घर के बच्चे नशे की लत में गिरफ्त

फिल्म स्टार शाहरुख खान दूसरे के बच्चों को बाइजू पर पढ़ने की सलाह देता है लेकिन अपने बच्चे पर ध्यान नहीं दिया। बच्चा पकड़ा गया और छूट भी जाएगा लेकिन उसकी नशे की लत छूटेगी? यह बड़ा सवाल है। दो दिन पूर्व ही देहरादून में एक बड़े बाप के बेटे की अत्याधिक नशा करने से मौत हो गयी। प्रदेश के एक नेता के दो बेटे हैं। एक बेटा शराब कारोबार से जुड़ा है तो दूसरा नशे के खिलाफ अभियान चलाता है। हम सब चुप हैं। यानी हम सब चेहरे पर चेहरा लगाए घूम रहे हैं। न हमें बच्चों की चिन्ता है और न हम उनपर ध्यान दे रहे हैं। क्या ये एकल परिवार के साइड इफेक्ट हैं?
देहरादून में मेरे एक रिश्तेदार का बेटा ड्रग एडिक्ट है। वह अपनी दादी को पीट कर उनका अंगूठा लगा कर पेंशन के रुपये निकाल लेता है। घर से पैसे चुरा लेता है। उसकी मां एक राजनीतिक दल से जुड़ी है। बाहर समाजसेविका बनी है। पति भी नशे की गिरफ्त में था और एक दिन सड़क पर उसने दम तोड़ दिया। मेरे गांव के एक फौजी के बेटे ने नशे के लिए पिता से एटीएम कार्ड ले लिया और उनके रिटायरमेंट में मिली रकम में से धीरे-धीरे पैसे उड़ाता रहा। जब तक पिता को पता लगा तो खाते से पांच लाख रुपये निकल चुके थे। यानी ड्रग और नशा गांवों तक पहुंच चुका है।
यह हम सबके किस्से हैं। हम तथाकथित भौतिक सुखों की दौड़ में भागे जा रहे हैं। बच्चों को न तो समय दे रहे हैं और न उन पर ध्यान दे रहे हैं। जब भी नशे से जुड़ी खबर होती है तो हम उससे कतराते हैं। चाहते हैं कि बच्चे न उस खबर को देखें न परवाह करें। समाज में नशे को लेकर बहस नहीं होती। उस पर बात नहीं होती। हम धीरे-धीरे बच्चों से दूर जा रहे हैं। और बच्चे तो बच्चे हैं। लाड़-प्यार और गलत संगत में पड़ कर कब बिगड़ जाएं पता नहीं। प्लीज अपने बच्चों को समय दें। उन पर ध्यान दें।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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