सुनो सरकार, ऐसे हाल रहे तो कैसे पनपेंगी बेटियां?

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उत्तराखंड गोल्डन गर्ल अंकिता ध्यानी
  • गोल्डन गर्ल अंकिता को स्पोर्ट्स कॉलेज में ट्रैक पर दौड़ने की अनुमति नहीं दी
  • गांव की पगडंडियों और सड़क पर दौड़ कर जीता नेशनल एथेलेटिक्स में कांस्य पदक
  • 19 साल की उम्र में जीते नेशनल लेवल पर 12 गोल्ड, 2 सिल्वर और एक ब्रांस

यदि कोरोना कर्फ्यू के दौरान देहरादून के रायपुर स्पोर्ट्स कॉलेज के सिंथेटिक ट्रैक में दौड़ने की अनुमति मिल जाती तो अंकिता ध्यानी नेशनल एथेलेटिक्स चैंपियनशिप में उत्तराखंड के लिए ब्रांस मेडल की जगह गोल्ड मेडल ला सकती थी। लेकिन विडम्बना है कि हमारी सरकार प्रतिभाओं को न तो प्रोत्साहन देती है और न ही सुविधाएं। कोराना कर्फ्यू के नाम पर अंकिता को ट्रैक पर दौड़ने की अनुमति नहीं मिली। अंकिता कहती है कि खेल विभाग के कई अधिकारियों ने भी कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। इसका परिणाम यह रहा कि दो महीने गांव की पगडंडी और सड़क पर दौड़ने के बाद जब पटियाला के सिंथेटिक ट्रैक पर दौड़ हुई तो शू की तुलना में स्पाइक पहनकर दौड़ने में टाइमिंग खराब होनी थी। इसके बावजूद अंकिता तीसरे नंबर पर रही।
यह भी विडम्बना है कि अंकिता को कोरोना कर्फ्यू के दौरान देहरादून में रहने के लिए भी जगह नहीं मिली। उसके पिता किसान हैं और देहरादून में कोई रिश्तेदार नहीं। गत दिनों पटियाला में आयोजित हुई नेशनल सीनियर एथेलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लेने से पहले उसका देहरादून में कोई ठिकाना नहीं था। एक सहेली के यहां तीन-चार दिन रुकी। ऐसे में भला कोई खिलाड़ी कैसे पदक जीत सकता है। लेकिन अंकिता न झुकी, न टूटी और न रुकी। 25 जून को जब प्रतियोगिता हुई तो पांच हजार मीटर की दौड़ में वह खूब दौड़ी और तीसरे स्थान पर रुकी।
गोल्डन गर्ल अंकिता ने 2019 के खेलो इंडिया में भी गोल्ड मैडल हासिल किया था। लंबी दूरी की यह धाविका अब तक नेशनल लेवल पर 12 गोल्ड, 2 सिल्वर और एक ब्रांस मेडल जीत चुकी है। खेलो इंडिया की तरफ से अंकिता को भोपाल में कोचिंग मिली है। उसके कोच केनियाई है और इन दिनों आनलाइन कोचिंग दे रहे हैं। लेकिन यहां भी एक समस्या है। अंकिता को पहले खेलो इंडिया की ओर से हर महीने मानदेय मिलता था लेकिन अक्टूबर से वह भी नहीं मिल रहा। प्रदेश सरकार ने जब उसे दौड़ने के लिए ट्रैक ही नहीं दिया तो उसे कोई आर्थिक सहायता देने का सवाल ही नहीं है। अंकिता चार-भाई बहन हैं और पिता किसान। प्रोत्साहन के अभाव, सरकारी अड़चनों और आर्थिक समस्या के चलते अंकिता कितनी लंबी रेस दौड़ पाएगी? यह विचारणीय है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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