नायक से खलनायक बने ऐरी-भट्ट

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  • इतिहास इन दोनों को कभी माफ नहीं करेगा
  • क्या कुर्सी में बैठे-बैठ ही स्वर्ग सिधारेंगे ये नेता?

2000 यानी राज्य गठन के बाद पैदा हुए किसी भी बच्चे से पूछ लो कि यूकेडी क्या है? 10 बच्चों में से 9 को पता ही नहीं क्या है ये? इसके बावजूद यूकेडी के नेताओं में अपनी कुर्सी (जनता प्रदत्त नहीं) के लिए जूतमपैजार हो जाता है। यानी सूत न कपास और जुलाहे से लट्ठम लट्ठा. एक बार फिर वही नौबत है। पार्टी में कुल दस पदाधिकारी हैं, गिन लिया जाएं तो एक भी कार्यकर्ता नहीं है। इसके बावजूद पार्टी से निष्कासन-निष्कासन का खेल होता है।
यूकेडी का द्विवार्षिक सम्मेलन अगले महीने पिथौरागढ़ में निर्धारित किया गया है। पिथौरागढ़ यानी देहरादून से 530 किलोमीटर दूर। ताकि कोई एक-दो लोग वहां जाना भी चाहे तो पहुंच न सके। साफ है कि निश्चित योजना के तहत दल के अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी ने यह स्थान तय किया है ताकि विरोध की गुंजाइश ही न हो। इस बीच सूत्रों का कहना है कि दिवाकर भट्ट यह सम्मेलन श्रीनगर में करवाना चाहते हैं। अपने निकटस्थ दो-चार लोगों को फोन कर सूचना दे रहे हैं कि अधिवेशन श्रीनगर में होगा। इधर, प्रमिला रावत ने पहले ही मसूरी में अधिवेशन की घोषणा की है।
दरअसल, ऐरी और भट्ट घोर पदलोलुप हैं। घोर स्वार्थी हैं। इन दोनों ने राज्य दिलवाने में सबसे बड़ा योगदान दिया, लेकिन राज्य मिलने के बाद दोनों ने प्रदेश और पार्टी का भट्ठा बिठाने का काम किया। भट्ट और ऐरी के पैंतरे राजनीतिक या पार्टी या प्रदेश हित में न होकर निजी हित में होते हैं। ऐरी इन दिनों हरदा की गोद में बैठे हैं। अंकिता हत्याकांड रहा हो या बेरोजगार युवाओं पर लाठीचार्ज का मामला या फिर प्रदेश विधानसभा में बैक डोर इंट्री का मामला। यूकेडी के ये बड़े नेता चुप्पी साधे रहे। प्रदेश के जल, जंगल और जमीन के मुद्दों पर भी ये चुप रहे हैं।
विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में यूकेडी ने कहीं भी एक भी बड़ी सभा नहीं की। गांवों में सम्मेलन नहीं किया। पार्टी के नये सदस्य बनाने का अभियान नहीं चलाया, उल्टे कुछ को पार्टी से निकाल दिया। मुझे लगता है कि ऐरी और भट्ट भी उत्तराखंड के नायक से खलनायक बन गये। दोनों को चाहिए था कि पार्टी में सेकेंड लाइन को मजबूत करते। पिता जब बूढ़ा हो जाता है तो बच्चे को बागडोर दे देता है, लेकिन ये खलनायक अपनी सभी संतानों और भाइयों को नालायक मानते हैं तो उनको जिम्मेदारी ही नहीं देना चाहते हैं। यानी यह मान लिया जाएं कि दोनों नेताओं ने तय किया है कि सीधे कुर्सी पर बैठकर ही स्वर्ग सिधारेंगे। ईश्वर इनकी कामना पूर्ण करें चाहे प्रदेश रहे न रहे, इनकी इगो और लालच बरकरार रहे।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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