बाबा रामदेव, जरा इन डाक्टरों से कुछ सीख लेते तो अच्छा होता!

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– जान हथेली पर रखकर कर रहे कोविड मरीजों की देखभाल
– उत्तराखंड का खा रहे हो तो बताओ, उत्तराखंड के लिए क्या किया?

28 साल का डा. मधुर गैरोला हिमालय अस्पताल में एमडी फाइनल ईयर का छात्र हैं। उसकी ड्यूटी अस्पताल के कोविड सेंटर में है। कभी रात तो कभी दिन। एक बार पीपीई किट पहन लो तो फिर घंटों तक न भोजन की चिंता न पानी पीने की फुरसत। इस युवा डाक्टर को एक बार पहले भी कोरोना हो चुका है और अब दूसरी बार जान हथेली पर है। पिता डा. एमएन गैरोला एमडी हैं और मां डा. नूतन गैरोला स्त्री रोग विशेषज्ञ। कौन मां अपने पुत्र के लिए चिंतित नहीं होगी। लेकिन फर्ज के आगे इस चिंता का कोई अर्थ नहीं। बेटे से बात मोबाइल पर नहीं होती, मैसेज छोड़ देती है कि जब बेटे को फुरसत मिलेगी तो बात होगी। कई बार तो बेटे से बातचीत के लिए घंटों का इंतजार होता है। जौलीग्रांट अस्पताल में ही डा. रेशमा कौशिक भी कोविड वार्ड की हेड हैं। वो भी उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहां किसी भी इंसान को रिस्क से बेहतर सावधानी रखनी है।

दून अस्पताल के नोडल अधिकारी डा. एनएस खत्री को मरीजों का इलाज करते कोरोना हो गया। कोरोनेशन अस्पताल के नोडल अधिकारी डा. एनएस बिष्ट पिछले एक साल से कोरोना मरीजों की देखभाल में जुटे हैं। ऐसे समय में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कोरोनाग्रस्त होने के बाद दून अस्पताल में भर्ती हुए थे तो रात भर अस्पताल में उनके साथ डा. बिष्ट ही रहे थे। चाहते तो घर रह सकते थे, लेकिन तत्कालीन सीएम का डाक्टर मुसीबत में साथ न रहे तो क्या बात। वो तब भी मसूरी स्कूल के तीन बच्चों के साथ अस्पताल में स्टेचर पर सोते रहे जब तीनों बच्चों में कोरोना के लक्षण मिले थे।

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डा. महेश कुडि़याल सीएमआई अस्पताल के एमडी हैं। उनके पास मरीजों का तांता है। यह ठीक है कि निजी अस्पताल पैसा कमा रहे हैं, लेकिन अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की जान भी तो बचा रहे हैं। मरीज भी देख रहे हैं और मानवता भी। कठिन समय में रात को आईसीयू बेड की व्यवस्था करने स्वयं अस्पताल पहुंच जाते हैं। इसके अलावा जरूरतमंदों की राशन और अन्य मदद भी कर रहे हैं।

कोरोना काल में सबसे अधिक संकटग्रस्त 65 साल से अधिक आयुवर्ग के लोग हैं। ऐसे में 65 साल से अधिक उम्र के डाक्टर सीएमआई अस्पताल के सीएमओ डा. अजीत गैरोला कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे हैं। 71 साल के आर्थो सर्जन डा. जयंत नवानी भी रिस्क लेकर मरीजों का इलाज कर रहे हैं। बात पैसे की नहीं है, बात पेशे की है। डाक्टर के धर्म की है। यदि कुछ डाक्टरों और मेडिकल स्टाफ को छोड़ दिया जाएं तो मुसीबत के समय अधिकांश डाक्टर और उनका स्टाफ अपना सेवा धर्म निभा रहे हैं।

बाबा रामदेव 25 सवाल इन डाक्टरों से पूछ तो रहे हैं लेकिन महामारी के इस दौर में उनकी भूमिका क्या रही है? कोरोनिल बनाई उसे भी भारत सरकार और डब्ल्यूएचओ ने ठुकरा दिया। स्वदेशी के नाम पर विशुद्ध व्यवसाय करते हैं बाबा रामदेव। वे स्वयं कह रहे हैं कि कोरोना में एक हजार डाक्टरों की जान गई तो क्या घर बैठे गई? मरीजों का इलाज करते हुए गई? आप अपना व्यवसाय करो, लेकिन डाक्टरों पर इस तरह से तंज न करो। आप भले ही अच्छे व्यवसायी हो लेकिन दो करोड़ से अधिक लोगों की जान तो एलोपैथी से ही बची। हां, हो सके तो इस बार उत्तराखंड में कोरोना से लड़ने के लिए 25 करोड़ सीएम राहत कोष में ही दे दो। यहां का खाते हो तो कुछ तो फर्ज निभाओ।

(वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार)

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