हरदा ऐसा धरना नौकरियों के सौदागरों के खिलाफ भी देते!

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  • बहादराबाद पुलिस चौकी पर धरना, चौकी की गंदगी साफ की, प्रदेश का क्या?
  • भूखी-नंगी जनता को धर्म नहीं, कर्म बचाएगा, नेताओं के खिलाफ चले अभियान

मैं हरदा से एक प्रेरणा लेता हूं, कभी हार न मानने की। उम्र के इस पड़ाव में जब उन्हें घर में बैठकर प्रभु भक्ति में लीन होकर जीवन बिताना चाहिए था, वह बहादराबाद पुलिस चौकी में जमीन पर बिछे कंबल में बैठ कर योगमुद्राएं कर जनता को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश की भूखी-अधनंगी जनता तो दिल्ली के मशकबीन बाजे वाले की धुन पर नाचती है। वह हरदा से कई सौ गुणा अधिक नटी है और पहाड़ी तो तमाशबीन ही हैं, नटी नट दिखाता है और पहाड़ सजदा करते हैं और ताली बजाते हैं। हरदा की योगमुद्राओं का अधिक प्रभाव नहीं पड़ने वाला।
मेरा यह कहना है कि यह ठीक है कि हरदा ने अपनी पार्टी के कार्यकर्त्ताओं के पक्ष में धरना दिया। मुकदमे वापस लेने का। एक अच्छे नेता को अपने कार्यकर्त्ताओं का सम्मान करना ही चाहिए। लेकिन मेरा सवाल हरदा से है कि उत्तराखंडियत की बात करने वाले हरदा नौकरियों में नेताओं की धांधली करने के मामले में चुप क्यों हैं? विधानसभा सचिवालय में सीएम धामी की नाटक मंडली ने जो कारनामा किया, उस पर खामोश क्यों हैं? क्या भाजपा और कांग्रेस में गुप्त समझौता है कि भ्रष्टाचार के मामले में दोनों एक-दूसरे के खिलाफ नहीं बोलेंगे?
हरदा, आपने दावा किया था कि विधानसभा सचिवालय में आपका एक भी आदमी नौकरी पर नहीं लगा। आप इतने मासूम तो नहीं हो कि आपको पता नहीं था कि विधानसभा में सीएम पुष्कर धामी और स्पीकर ऋतु खंडूड़ी क्या खेल खेलने जा रहे हैं? इसके बावजूद आप नहीं बोले। आप चाहते तो सवाल उठा सकते थे, लेकिन क्या सीएम धामी के इस पूरे नाटक में आपकी मौन स्वीकृति थी। आप आज भी मांग कर सकते हो कि बर्खास्त किये गये कर्मचारियों के मामले को सदन में स्वीकृति दें या अध्यादेश लाकर प्रदेश के युवा बेरोजगारों के साथ न्याय करें?
आप चाहते तो यूकेएसएसएससी में 200 करोड़ से भी अधिक के पेपर लीक कांड की जांच सीबीआई से कराने की मांग कर सकते थे। सरकार पर ठीक ऐसे ही दबाव बना सकते थे जैसे बहादराबाद चौकी में धरना देकर दबाव बनाया। लेकिन नहीं, भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के मामले में भाजपा-कांग्रेस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह उत्तराखंड की पढ़ी-लिख अधनंगी और भूखी जनता का दुर्भाग्य है जनता का जमीर मर चुका है और वह एक लड़ाई और लड़ने के लिए तैयार नहीं है।
वैसे भी जब तक जनता की आंखों पर धर्म और छद्म राष्ट्रवाद का परदा पड़ा रहेगा तो तब तक देवभूमि में सत्ता किसी की भी हो, प्रदेश बदहाल ही रहेगा। जनता को धर्म से नहीं कर्म से प्रदेश को सहेजना और संवारना होगा।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

सात देशों की कमान भारतीय मूल के लोगों के हाथ

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