डा. बिष्ट ने सच बोला, तो सरकार बुरा मान गई?

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  • बताओ सरकार, कहां मिलती है अस्पतालों में दवाई?
  • बुखार, जुकाम को छोड़ खांसी की भी दवा नहीं

कोरोनेशन अस्पताल के सीनियर फिजिशियन डा.एन.एस बिष्ट ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों के दो प्रतिशत दवाई भी नहीं है। बस, उनके इस बयान से स्वास्थ्य महानिदेशक साहब बुरा मान गए। नोटिस जारी कर जवाब तलब कर दिया है। सही मायने में डा. एन एस बिष्ट ने आधा सच कहा। दरअसल, उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों में मरीजों को एक प्रतिशत ही दवाई मिलती है। गौरतलब है कि डा. एनएस बिष्ट पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत के फिजिशियन डाक्टर रहे हैं।
इसका उदाहरण मैं खुद हूं। पिछले साल नवम्बर में मेरे दिमाग में माइनर क्लोटिंग हो गयी। मेरा इलाज सीएमआई के न्यूरो सर्जन डा. महेश कुड़ियाल और डा. एन.एस.बिष्ट ने किया। डा. बिष्ट ने मुझे डायबिटीज और दिमाग संबंधी अन्य दवाएं प्रिस्क्राइब की। क्या कोरोनेशन अस्पताल में मुझे वो दवाई मिली? नहीं, मैं नियमित दवाई खा रहा हूं। बाहर से जो दवाएं ले रहा हूं उस पर महीने में 3500 से भी अधिक खर्च हो रहा है। इसमें विटामिन बी-29 जैसी दवा भी शामिल है, जोकि सरकारी अस्पताल में आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए थी।
सरकारी अस्पतालों में मरीजों को 99 प्रतिशत दवाएं बाहर से ही खरीदनी पड़ती है। यदि स्वास्थ्य निदेशक को सच्चाई पता करनी है तो इसका सर्वे कराया जा सकता है। दून अस्पताल की ओपीडी में रोजाना एक हजार मरीज आते हैं। इनमें से एक भी मरीज को सारी दवाएं अस्पताल से नहीं मिलती। अधिकांश दवाएं कैमिस्ट से ही लेनी पड़ती हैं।
डीजी हेल्थ से यह अपील करता हूं कि स्वास्थ्य निदेशालय में कई सीनियर डाक्टर केवल दलाली कर रहे हैं। उन पर अंकुश लगाएं। उनको अस्पतालों में तैनात करें। अस्पतालों में दवाएं उपलब्ध कराएं। एक बार खुद ही अस्पतालों में जाएं, मरीजों से सीधे पूछे। निदेशालय में बैठकर सीएमओ को नोटिस जारी करने से बेहतर होगा कि अस्पतालों की हकीकत का पता करें। पर्वतीय जिलों में तो और भी बुरा हाल है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

…तो क्या व्यर्थ चला जाएगा लोहारी गांव का बलिदान?

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