मेवात में रही है सांप्रदायिक सदभाव की रीति

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  • घासेड़ा पहुंच गांधी ने मेवों को पाकिस्तान जाने से रोका था
  • ये कौन है जो हवा में जहर फैला रहे, सख्त कार्रवाई हो

मैंने गुड़गांव समेत दक्षिण हरियाणा में अमर उजाला और नवभारत टाइम्स में विभिन्न पदों पर रहते हुए लगभग 12 साल पत्रकारिता की। इस दौरान मेवात के कई इलाकों में खूब घूमा और ढेर सारी स्टोरी कीं। घासेड़ा गांव भी गया। यह गांव ऐतिहासिक है। विभाजन के समय जब बड़ी संख्या में मेव पाकिस्तान जाने लगे तो महात्मा गांधी 19 दिसम्बर 1947 को घासेड़ा पहुंचे और उन्होंने मेवों से अपील की कि ये तुम्हारा ही देश है, इसे छोड़कर कहां जाओगे, बस मेरे कहने पर रुक जाओ, तुम्हारी हर जरूरत की जिम्मेदारी मेरी।
उनकी अपील का असर यह हुआ कि पलायन कर रहे लोगों के पांव वहीं ठहर गए। इस गांव को अब गांधी ग्राम से जाना जाता है। साल 2000 से हर साल इस गांव में मेवात दिवस के तौर पर महात्मा गांधी को याद किया जाता है। दुर्भाग्य रहा कि महात्मा गांधी की एक साल की अवधि में ही हत्या कर दी गयी।
मेवात के पिछड़ेपन के लिए सरकारें दोषी रही हैं। यहां आज भी अलग जिला बनने के बावजूद अशिक्षा और अपराध का बोलबाला है। नूंह, फिरोजपुर झिरका, तावडू में हालात कुछ बेहतर हैं लेकिन ग्रामीण आज भी विकास से कोसों दूर हैं। सरकारों ने कभी इस ओर ध्यान दिया ही नहीं। यहां राजनीति में भी वंशवाद का बोलबाला है। किसी नेता ने चाहा ही नहीं कि मेवात का विकास हो। उन्हें डर था कि यदि मेव पढ़-लिख जाएंगे तो वोट बैंक खिसक सकता है।
बता दूं कि मेव दक्षिण हरियाणा के मेवात जिले में हैं। इनकी कुछ आबादी यूपी, राजस्थान में भी है। मेव इस्लाम को मानते हैं लेकिन कुछ हिन्दु रीति-रिवाजों का पालन भी करते हैं। इनका इतिहास बहुत पुराना है और यह भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं।
इस तमाम गतिविधियों के बावजूद वहां 36 बिरादरी का सम्मान है। मेवात में बहुत कम हिन्दु-मुस्लिम दंगे हुए हैं। आपसी सदभाव है। हाल में जो घटना हुई है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। और इसकी आड़ में कुछ ऐसे लोग हैं जो सौहार्दपूर्ण हवा में जहर घोल रहे हैं। ऐसे असामाजिक तत्वों की पहचान करनी चाहिए और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

एक गुमनाम आंदोलनकारी ऐसी भी

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