- अब किसी का दिल नहीं पसीजता, गांव की गलियों में रही भटक
- कुछ इस इंतजार में हैं कि गौमाता बच्चा जन्म दें तो दूध के लिए अपना लें
मेरी चाची के बोड़ यानी बछड़े की कहानी याद है आपको? नहीं होगी। होगी भी कैसे, अप्रैल में लिखी थी। हमारी सरकारों ने हमें पेट से ऊपर कुछ सोचने के लिए समय ही नहीं दिया। सारी लड़ाई और विकास का पैमाना पेट है। पांच किलो नि:शुल्क राशन, 2 रुपये किलो गेहूं, 3 रुपये किलो चावल। सरकार जानती है कि पहाड़ में अधिकांश लोग किचन गार्डनिंग कर रहे हैं लेकिन किसान बही के आधार पर किसान सम्मान योजना दी जा रही है। यानी कर्मठ और मेहनतकश पहाड़ियों को नाकारा बनाया जा रहा है। मुफ्त की राशन का यही परिणाम है कि प्रदेश के 91 हजार लोगों ने अपात्र होते हुए भी राशन कार्ड से वर्षों सस्ता या नि:शुल्क राशन खाया। जब पूरी लड़ाई पेट की हो तो ऐसे में भला मेरी चाची का बिगड़ा बोड़ किसे याद रहेगा?
खैर बता दूं कि सात जुलाई को गांव गया तो पता चला कि वह बोड़ अब भी आवारा है। इस बीच मेरे गांव पहुंचने से तीन दिन पहले हमारे एक छोटे बोड को गुलदार ने गांव के चौक पर सरेशाम कत्ल कर दिया। उस ख्वाल की एक चश्मदीद चाची के मुताबिक गुलदार उस बछड़े को लेने के लिए तीन बार चौक में आया। आखिरकार उसे घसीटता हुआ जंगल में ले गया। ग्रामीणों के अनुसार गुलदार कुछ कमजोर है तो छोटे बछड़ों को ही खा रहा है। बड़े बोड़ और गायों पर हमला नहीं कर रहा। उधर, चाची बिगड़ चुके बोड को रोज जंगल हांक देती है, लेकिन वह देर शाम को मटक-भटक कर घर लौट आता है और उसके साथ में आ जाती है एक लाल गर्भवती गौमाता।
यह लाल रंग की गौमाता हमारे आंगन में रात गुजारती है और पौ फटते ही जंगल की ओर घास खाने के लिए चल देती है। दरअसल, हमारा घर रास्ते का है। मां और चाची ने कई बार रात के समय लाठी-डंडों से आड़ी-तिरछी बाड़ करने की कोशिश की लेकिन फिर पसीज जाती हैं। हालांकि मां और चाची का हौसला नहीं है कि वह घर में दो-दो गाय पाल सकें। लाल गौमाता गर्भवती है। सातवां या आठवां महीना हो सकता है। चाची का अनुमान है गाय का प्रसव अगस्त आखिर में या सितम्बर में हो सकता है। गाय चूंकि लावारिश है तो उसे अपनी देखभाल खुद ही करनी पड़ती है। इसके बावजूद उसकी स्किन चमकदार हो गयी है, उसके चेहरे और बदन पर ठीक वैसा ही लावण्य छलक रहा है जैसे गर्भवती स्त्री के चेहरे पर होता है। वह जुगाली भी बड़े नाजुक अंदाज से करती है। उसके चेहरे पर मासूमियत है और आंखों में बेबसी सी।
सात जुलाई 2022 देर शाम को जब वह हमारे घर के रास्ते में आई तो वहीं खड़ी हो गयी। उसने बोड़ की ओर देखा, लेकिन बोड़ ने उसकी ओर नहीं देखा। लगा, बोड़ शायद नाराज है। गौमाता के कदम रास्ते में ही ठिठक गये। बोड़ की इस उपेक्षा से गौमाता के कदम वहीं ठहर गये। बोड़ मस्त रहा। उसने गाय की ओर नहीं देखा। गौमाता घोड़े की तरह हिनहिनाई भी, लेकिन बोड़ महाराज अपने पैरों की स्टेªचिंग करते रहे।
हमारे घर का रास्ता बहुत संकरा है। गाय संभवतः थकी हुई थी। जिस तरह से सर्द रातों में रेलवे स्टेशन या बस अड्डे के पास कोई व्यक्ति ठंड से बचने के लिए अपने पूरे शरीर को सिकोड़ लेता है, गौमाता ने भी ऐसे ही पैरों को मोड़ा और उसी रास्ते पर बैठ गयी। मैं उसे लगातार देख रहा था। कुछ देर बाद स्थिति असहज हो गयी तो गौमाता फिर खड़ी हो गयी। हमारे दो मकान हैं और इनके बीच में एक बड़ा सा आंगन। आंगन में आने के लिए दोनों ओर सीढ़ियां हैं। गौमाता एक सीढ़ी के नजदीक थी लेकिन वह सीढ़ियां उसकी पीठ की ओर थी। रास्ता संकरा होने से वह मुड़ नहीं पा रही थी, उसने बैक गियर लगाया। तीन-चार कदम पीछे चली, लेकिन नीचे गिरने का खतरा भांप उसके पीछे हट रहे कदम रुक गये और फिर उसी स्थान पर आगे बढ़ी और फिर वैसे ही बैठ गयी। मेरे दिल में एक हूक उठी, हाय, गौमाता को पीछे कदम खींचने से रोकने में एक चिन्ता मां की सी भी रही होगी कि गर्भ में एक शिशु पल रहा है कहीं गिर गयी तो गर्भस्थ शिशु को चोट न पहुंचें। मां-मां होती है, भले ही वह बेजुबान हो।
गौमाता कुछ देर और वहीं बैठी रही। लेकिन यह बहुत ही कष्टप्रद स्थिति थी। ऐसे में वह कुछ देर बाद उठी और हिम्मत जुटा कर दूसरे कोने की सीढ़ियों से चलते हुए हमारे आंगन में आ ही गयी। हमारे आंगन की सीढ़ियां उतरते हुए उसकी भोली आंखें मुझे, चाची और चाचाजी को निहार रही थी। भय रहा होगा कि कहीं हम भी उसे दुत्कार कर भगा न दें। हम तीनों ही चुप थे। संभवतः तीनों की गौमाता की बेबसी समझ रहे थे। कुछ देर बाद चाचाजी मुस्कराए, लो आ गयी महारानी।
चाची के घुटने में दर्द रहता है और चाचाजी बीमार। ऐसे में एक गाय, उसका बछड़ा और बिगड़ा बोड़ ही कम परेशानी है कि यह आवारा गौमाता भी आ जाती है। इसके बावजूद चाची उसे पानी पिलाती है, घास खिलाती है। चाची कहती हैं, इस गाय को अभी कोई नहीं बांधेगा, इंतजार करेंगे कि कब इसका प्रसव हो। प्रसव अगस्त आखिर या सितम्बर में होगा। लोग चालाक हैं, तभी कोई इसे अपनाएगा।
मैं चाची के मर्म को समझ रहा था। चाची बहुत उदार हृदय हैं। मैंने चाची और अपने पूर्व फौजी चाचाजी को नजदीक से देखा है। वह रोज सुबह आंगन में ढेर सारा चावल डाल देते हैं। अचानक ही ढेर सारी घुंडुड़ियां यानी गौरया हमारे आंगन में चहकने लगती हैं। दिल खुश हो जाता है। पर गाय कैसे पाले? दो गाय पालना वश में नहीं है।
मेरे गांव के कई लोग आवारा पशुओं को घास खिलाने और पानी पिलाने का काम कर रहे हैं, लेकिन अधिकांश की अपनी हदें हैं। वो लोग पशुपालन नहीं कर सकते। गांव में जवान लोग बहुत कम रह गये हैं और बुजुर्गों के लिए गाय पालना टेढ़ी खीर है। ऐसे में इस गर्भवती गौमाता को इंतजार है कि कोई साहसी महिला उसको अपना लें, यह बात अलग है कि हमारी यह गौमाता प्रसव तक गुलदार का निवाला बनने से बच सके। सच यही है कि गौमाता के नाम पर सत्ता के शिखर पर पहुंचा जा सकता है लेकिन धरातल पर कोई गौमाता की सुध लेवा नहीं। है कोई गौभक्त, जो इस गर्भवती गाय को अपना ले।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]