जोशीमठ: इतिहास दून के पत्रकारों को कभी माफ नहीं करेगा

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  • जोशीमठ मर रहा है तो दून के पत्रकार सरकार के चरणों में लेटे हैं!
  • ‘प्रेसनोटजीवी‘ पत्रकार और संपादक केवल दलाली तक सीमित

जोशीमठ में इन दिनों एक और अलकनंदा बह रही है, आंसुओं की। वहां का हर इंसान रो रहा है। आदिगुरु शंकराचार्य की तपस्थली खतरे में है। अस्तित्व मिट रहा है। देश-दुनिया के कैमरे और पत्रकार जोशीमठ पहुंचे, लेकिन देहरादून के मुख्यधारा के पत्रकार टेबल रिपोर्टिंग कर रहे हैं। स्ट्रिंगरों के भरोसे अखबार और चैनल चला रहे हैं। उनको दौड़ा रहे हैं। जोशीमठ मामले में अधिकांश ब्यूरो रिपोर्टर ने टेबल रिपोर्टिंग की है। यदि कोई संवेदनशील पत्रकार कुछ लिख देता है तो संपादक उसे उड़ा देता है कि सरकार विरोधी है। यदि पहाड़ बचाना सरकार विरोधी है तो ऐसा विरोध रोज होना चाहिए।
मैं भास्कर के संपादक लक्ष्मी प्रसाद पंत का कायल हो गया हूं। वह व्यक्ति राजस्थान से भी पहाड़ की पीड़ा उजागर कर रहा है। सलाम है ऐसे पत्रकार को। वह लगातार जोशीमठ पर अपने पत्र के माध्यम से चिन्ता जता रहे हैं। एक मरते हुए शहर की पीड़ा को जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। डाउन टू अर्थ मैगजीन के पत्रकार राजू सजवाण पिछले एक साल से लगातार दिल्ली से जोशीमठ आकर वहां की रिपोर्टिंग कर रहे हैं। जबकि देहरादून में मुख्यधारा के संपादक अपने मालिकों के लिए सरकार से दलाली करने में व्यस्त हैं। ऐसे में किस मुंह से नगर निगम में हर महीने उगाही करने वाले पत्रकारों को नौकरी से निकालेंगे।
‘प्रेसनोटजीवी‘ पत्रकार जब सचिवालय ही नहीं जाते तो जोशीमठ भला क्यों जाते? लिहाजा बेचारे स्ट्रिंगरों की शामत है। सीबीआरआई हो या आईआईटी, यूसैक हो या एनडीएमए या वाडिया। वैज्ञानिकों से भी बात करनी है तो स्ट्रिंगर करेगा। 50 बार फोन करता है बेचारा तो जवाब मिलता है। केंद्र सरकार से सख्त निर्देश हैं, मीडिया को जानकारी न दो। उधर, डेस्क से स्ट्रिंगर को फटकार मिलती है कि सूचना नहीं दी।
बताओ, ब्यूरो क्या केवल दलाली के लिए बनाया है? ब्यूरो के रिपोर्टरों की यदि इतनी भी पकड़ नहीं तो निकाल बाहर करो ऐसे पत्रकारों को। क्यों नहीं दौड़ाते ब्यूरो के इन रिपोर्टरों को। ये पत्रकार चुनाव में पैकेज थामने के लिए तो खूब दौड़ते हैं। खबर के लिए क्यों नहीं दौड़ते? कंपनी का बिल बचा रहे हैं लेकिन जोशीमठ मर रहा है। 25-50 हजार का खर्च अखबार या चैनल नहीं डुबाएगा, लेकिन मरते शहर के लोगों की पीड़ा उकरने पर दुआएं बेशुमार मिलेंगी।
…….. पत्रकारों, अपने ईमान का जगाओ। मरते हुए जोशीमठ की पीड़ा और आंसुओं के सैलाब से सरकार की आंखें खुलवाओ। पहाड़ में कथित विकास रूपी डाइनामाइट के विस्फोट, पहाड़ की सीना खोद कर बनती सुरंगों और जलधाराओं को रोककर बनाए जा रहे बांधों का विरोध करो। ऐसा नहीं करोगे तो इतिहास तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा। पहाड़ की बर्बादी में तुम भी उतने ही जिम्मेदार हो जितनी कि यहां की सरकारें।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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